विधानसभा के विशेष सत्र में विकास नहीं पहाड़-मैदान को लेकर भिड़े विधायक, नेता जी ऐसे कैसे होगा विकास !

उत्तराखंड के स्थापना के 25 साल पूरे होने के अवसर पर विधानसभा के विशेष सत्र का आयोजन किया गया। इस सत्र में प्रदेश के विभिन्न गंभीर मुद्दों पर चर्चा होने की उम्मीद लगाए और कुछ बड़ा होने की उम्मीद लगाए जनता बैठी थी। लेकिन इस सत्र में कुछ ऐसा हुआ जिसने एक बार फिर साबित कर दिया कि राज्य गठन के 25 साल बाद आज भी कहीं न कहीं पहाड़-मैदान के बीच की खाई पट नहीं पाई है।

विशेष सत्र में विकास नहीं पहाड़-मैदान को लेकर भिड़े विधायक

विशेष सत्र में जहां लोग गैरसैंण को लेकर बड़ी बात होने की आस में थे तो वहीं पक्ष और विपक्ष दोनों के विधायक पहाड़ मैदान में ही उलझे रह गए। बात इतनी बढ़ गई कि संसदीय कार्यमंत्री को बीच में हस्तक्षेप करना पड़ा और कहा कि हम सब उत्तराखंडी है हमें यहां पहाड़ और मैदान पर बात ना करके उत्तराखंड के विकास पर बात करनी है।

विशेष सत्र का दूसरा दिन गहमागहमी भरा रहा। जैसे ही सदन में विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने बनभूलपुरा को नरक बोला तो विपक्षी विधायक इसके विरोध में उतर आए। कांग्रेस विधायक सुमित ह्रदयेश से लेकर तिलकराज बेहड़ ने इस टिप्पणी का विरोध किया।। यहीं नहीं नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने भी इसे लेकर आपत्ति जताई।

बसपा विधायक ने किया पहाड़-मैदान की राजनीति का विरोध

सदन के विशेष सत्र में छिड़ी पहाड़ मैदान की इस बहस को लेकर बसपा विधायक ने जो बात कही वो लोगों के दिलों को छू गई। बसपा विधायक ने पहाड़-मैदान की राजनीति का विरोध करते हुए कहा कि हमें उत्तराखंड के विकास का रोडमैप तैयार करने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमने पहाड़ के तीन नेताओं को जितवाकर लोकसभा भेजा है, हमारी मानसिकता गलत नहीं है।

लेकिन जैसे ही पहाड़ से विधायक जीत जाते हैं तो वो देहरादून और हल्द्वानी में मकान बना लेते हैं। उनके इस बयान के बाद से इसे लेकर चारों ओर चर्चाएं हो रही हैं। आम जनता का कहना है कि विधायक हल्द्वानी देहरादून में मकान बना लेते हैं जब पहाड़ का विधायक पहाड़ में रहेगा ही नहीं तो पहाड़ का विकास कैसे होगा ?  इसके साथ ही लोगों का ये भी कहना है कि अगर पक्ष-विपक्ष के विधायक आपस में ही पहाड़ मैदान मे उलझे रह जाएंगे तो विकास कैसे होगा ?

नेता जी ऐसे कैसे होगा विकास ?

राज्य स्थापना की रजत जयंती पर आयोजित विशेष सत्र में पक्ष और विपक्ष के बीच पहाड़ और मैदान को लेकर हुई इस बहस से कई सवाल उठ रहे हैं। जिसे लेकर जनता जवाब चाहती है कि जब पहाड़ के जनप्रतिनिधि ही पहाड़ में नहीं रह रहे, जब पहाड़ के जनप्रतिनिधि ही पलायन कर देहरादून और हल्द्वानी का रूख कर रहे हैं तो आखिर पहाड़ों से पलायन कैसे रूकेगा ?, इसके साथ ही सवाल ये भी बनता है कि जहां 25 सालों में पहाड़ों पर आज भी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं पहुंच पाईं हैं तो आखिर विकास कैसे होगा ?

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