विजन 2020 न्यूज: जहां एक ओर पूरा देश रक्षाबंधन का त्यौहार मनाता है वहीं इस दिन एक ऐसा मेला होता है जहां प्राचीन काल से चली आ रही एक स्थापित परंपरा के अनुसार लोग एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। जहां लोग पत्थरों से एक दूसरे को घायल कर देते है। जी हां हम बात कर रहें हैं उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मां वाराही धाम में श्रावणी पूर्णिमा (रक्षाबंधन के दिन) लगने वाले बग्वाल मेले की। इस दिन यहां के स्थानीय लोग चार दलों में विभाजित होकर पत्थरों से युद्घ करते हैं। इन चार दलों को खाम कहा जाता है, जिनमें क्रमशः चम्याल खाम, बालिक खाम, लमगडिया खाम, और गडहवाल होते हैं। ये चार दल दो समूहों में बंट जाते हैं और इसके बाद युद्ध होता है जिसमें पत्थरों को अस्त्र के रूप में उपयोग किया जाता है। इस पत्थरमार युद्ध को स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहा जाता है। यह बग्वाल कुमाऊं की संस्कृति का अभिन्न अंग है। श्रावण मास में पूरे पखवाड़े तक देवीधुरा में मेला लगता है।जहां सबके लिये यह दिन रक्षाबंधन का दिन होता है वहीं देवीधुरा के लिये यह दिन पत्थर-युद्ध अर्थात ‘बग्वाल का दिवस’ होता है। इस पाषाण युद्ध को जिसको देखने देश के कोने-कोने से दर्शनार्थी आते हैं।इस पाषाण युद्ध में चार खानों के दो दल एक दूसरे के ऊपर पत्थर बरसाते हैं। इस युद्घ में कई लोग घायल भी होते हैं। मान्यता है की बग्वाल खेलने वाला व्यक्ति यदि पूर्णरूप से शुद्ध व पवित्रता ऱखता है तो उसे पत्थरों की चोट नहीं लगेगी। बग्वाल खेलने वाले अपने साथ बांस के बने फर्रे पत्थरों को रोकने के लिए रखते हैं।