उत्तराखंड की राजनीति खिचड़ी जैसी लगती है!

उत्तराखंड की राजनीति खिचड़ी जैसी लगने लगी है। कभी विपक्ष के कुछ नेता प्रदेश सरकार की खुशामत करते दिखते है तो कभी सत्ता पार्टी के नेता ही सरकार की टांग खींचते है। ऐसे में तय करना थोड़ा कठिन हो जाता है कि कौन किसके साथ है और कब तक है।

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हाल फिलहाल उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने भागीरथी मास्टर प्लान को खारिज करने के विरोध में दिल्ली में अनशन किया था। कई कांग्रेसी नेता मौजूद रहे। पर सीएम का प्रदर्शन कुछ घंटों में ही खत्म हो गया। जिससे मुख्यमंत्री विपक्ष के निशाने पर आ गए। विपक्ष पार्टी के मजे हुए नेता और बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट को हरीश रावत का शुभचिंतक बताया जाता है।

 

चर्चाओं में रहता है कि अजय भट्ट अंदरूनी तौर पर हरीश रावत को पसंद करते है और भट्ट पर आरोप लगाए जाते है कि बीजेपी के नेता होने के तौर पर वो कभी रावत पर कड़ा प्रहार नही करते। बस दिखाने के लिए एक दो जुमले कस देते है। इस बार भी भट्ट ने सीएम रावत पर जुमला कसते हुए कहा कि  हरीश रावत अपनी गलतियां छिपाने के लिए ऐसे नाटक करते रहते हैं। वे जो अब तक राज्य में कर रहे थे, वही उन्होंने अब दिल्ली में किया। भागीरथी इको सेंसटिव जोन को लेकर पूरे दिन के उपवास की घोषणा करने के बावजूद सीएम हरीश रावत दो घंटे भी जंतर मंतर पर नहीं रुके।

 

 

सूत्रों की माने तो बीजेपी के कई नेता अजय भट्ट के इस बयान को भी खानापूर्ति बता रहे है। उनका मानना है कि अगर भट्ट रावत को काबिल नेता समझते हे तो खुले तौर पर स्वीकार करे। ये लुक्का छुप्पी वाला खेल न खेले।
वहीं कांग्रेस में भी कई ऐसे नेता है जो अपने मुख्यमंत्री से खार खाते है। राजनीति गलियों में एक नाम किशोर उपाध्याय का भी है  सुना तो यहां तक जाता है जो हरीश रावत को खास पसंद नही करते। उनके सुर भी रावत से अलग ही होते है। कांग्रेस के बागी नेता और भाजपा में शामिल हुए विजय बहुगुणा के लिए तो सीएम साहब आंख का पत्थर है। कांग्रेस में रहते हुए भी कई बार बहुगुणा रावत पर तीखे तंज करते हुए पाए गए है। वहीं बीजेपी में भी गुटबाजी चरम पर है। इसके अलावा बीजेपी का हर नेता वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहा है। आलम ये है कि इस बार होने वाले विस चुनाव के लिए दर्जनभर से ज्यादा उम्मीदवार मुख्यमंत्री के पद की दावेदारी के लिए सामने आ रहे है। और एक दूसरे का पत्ता काटने के भी पूरे प्रयार में लगे है।

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ऐसे में उत्तराखंड की राजनीति कौन किस खेमे में जा गिरे और कौन नेता अपनी पार्टी में बागी होकर विपक्षियों से हाथ मिला ले ये अंदाज लगाना थोड़ा मुश्किल है। हालाकिं पूरे देश की राजनीति में पार्टी छोड़ने और पकड़ने का खेल जारी है ये बात और है कि ये देवभूमि में “आम” है। उत्तराखंड मे वर्चस्व की लड़ाई जारी है और वर्तमान परिस्थिति को देख कर कह सकते है संघर्ष लंबा है और सब खिचड़ी जैसा है।

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