

लद्दाख घूमने के लिए हर साल लाखों की संख्या में पर्यटक पहुंचते हैं। इस ठंडे रेगिस्तान की खूबसूरती निहारने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी लोग पहुंचते हैं। ऐसा ही एक रेगिस्तान उत्तराखंड में भी है। सुनकर आप हैरान हो सकते हैं लेकिन ये सच है।
उत्तराखंड में भी है एक रेगिस्तान
उत्तराखंड में बर्फीली चोटियों और हरे-भरे जंगलों के बीच खूबसूरत सा रेगिस्तान भी है। और इस रेगिस्तान का इतिहास उतना ही पुराना और दिलचस्प है जितना किसी और फेमस हिमालयी रेगिस्तानों का रहा है। जिस जगह की हम बात कर रहे हैं वो है उत्तराखंड की नेलांग घाटी जिसे पहाड़ का रेगिस्तान भी कहा जाता है।
भारत-चीन युद्ध के बाद बदल गए थे हालात
ये घाटी उत्तरकाशी जिले में स्थित है जो कि गंगोत्री नेशनल पार्क का एक हिस्सा है। अब तो ये भारत और चीन के बॉर्डर पर है लेकिन तिब्बत के व्यापारी यहां ऊन, नमक और चमड़े के कपड़े लेकर आते थे, और बदले में हमारे उत्तराखंड से तेल, मसाले, तंबाकू, गुड़ ले जाते थे।यहां इतना व्यापार हुआ करता था कि उत्तरकाशी को तब बाड़ाहाट यानी “बड़ा बाजार” कहा जाता था।
लेकिन फिर 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ जिसने सबकुछ बदल दिया। भारत और चीन की ये सीमा संवेदनशील घोषित हो गई और। जिस घाटी में व्यापार की रौनक रहती थी वो वीरान हो गई। निलांग घाटी में तब जाड़ जनजाति रहा करती थी। इस युद्ध के कारण जाड़ जनजाति को विस्थापित होना पड़ा।
लद्दाख जैसे नजारे मिलेंगे देखने को
बता दें कि उत्तराखंड की निलांग वैली के नजारे बिल्कुल लद्दाख और स्पीति जैसे हैं। ऊंचे पहाड़, ठंडी हवाएं और सुनहरी धूप यही वजह भी है कि इसे पहाड़ का रेगिस्तान कहा जाता है। बता दें की यहां आने के लिए पर्यटकों को 150 रुपये फीस देकर प्रशासन से परमिशन लेनी पड़ती है।



