आदिकाल से ही सनातन धर्म में ऐसी व्यवस्था चली आ रही है, जिसमें धार्मिक अनुष्ठान सिर्फ ब्राह्मण समाज की ओर से की जाती है.
इतिहासकार बताते है कि उत्तराखंड के चमोली जिले में बद्रीनाथ धाम एक ऐसा मंदिर है, जहां पिछले 151 सालों से कपाट खुलने से बंद होने तक मंदिर में रोज़ाना सुबह-शाम सन् 1865 में लिखी मुस्लिम शख्स की लिखी आरती की जाती है, यह आरती युवा मुस्लिम शायर फकरुद्दीन उर्फ़ बदरुद्दीन ने लिखी थी, जो चमोली जिले के नंदप्रयाग का निवासी था.
104 वर्ष की उम्र में साल 1951 में बदरुद्दीन का निधन हो गया था.
भगवान बद्री विशाल की पूजा अर्चना विधिवत परंपराओं की शुरुआत इसी आरती के साथ होती है. यह आरती फकररुद्दीन ने महज 18 वर्ष की उम्र में लिखी थी. इस आरती में बद्रीनाथ धाम के धार्मिक महत्व के अलावा यहां की सुंदरता का भी वर्णन किया गया है.
बद्रीनाथ जी की आरती
श्री पवन मंद सुगंध शीतल , हेम मंदिर शोभितम्
निकट गंगा बहत निर्मल . श्री बद्रीनाथ विशम्भरम्।
शेष सुमरिन करत निशदिन , धरत ध्यान महेश्वरम्
श्री वेद ब्रह्मा करत स्तुति, श्री बद्रीनाथ विशम्भरम्।
शक्ति गौरी गणेश शारद ,नारद मुनि उच्चारणम्
वेद ध्यान अपार लीला ,श्री बद्रीनाथ विशम्भरम्।
यक्ष किन्नर करत कौतुक ,ज्ञान गन्धर्व प्रकाशितम्
श्री लक्ष्मी कमला चंवर डोले ,श्री बद्रीनाथ विशम्भरम्।
कैलाश में इक देवी निरंजन ,शैल शिखर महेश्वरम्
राजा युधिष्ठर करत स्तुति।,श्री बद्रीनाथ विशम्भरम्।
श्री बद्रीनाथ के पंचरत्न ,पढ़त पाप विनाशनम्
कोटि तीर्थ भए पुण्यों ,प्राप्ते फलदायकम्।
पोस्ट मास्टर फकरुद्दीन उर्फ बदरुद्दीन साहब की कई पुश्ते आदिकाल से नन्दप्रयाग में ही पली बढ़ी हुई। फकरुद्दीन ने जब इस आरती की संरचना की तो उसी दिन से उन्होने अपना नाम बदलकर बद्रीनाथ का बदरुद्दीन कर दिया