आज हम ऐसे शख्स की बात कर रहे हैं जो भले ही अपने शरीर से लाचार है लेकिन इरादे इतने बुलंद है कि सबके लिए अद्भुत मिशाल बन चूका है. जिसने कभी भी अपनी लाचारियों को आड़े नही आने दिया और एक नया इतिहास रच दिया. जी हाँ बात कर रहे हैं गोविंद की. एक ऐसा शख्स जिसके पास दाहिना हाथ नही है और बदकिस्मती से बायां हाथ भी हमारे जैसा नही होकर अविकसित है। बचपन से इस जहमत को उठाते हुए उसने जिंदगी के 25 साल गुजर दिए लेकिन उसकी चमकती आंखे, बुलंद हौसले, अपने मंजिल को पाने का जज्बा किसी को भी स्तब्ध कर सकता है। ये सिर्फ एक युवा का परिचय नही बल्कि शुरुआत है। हाल ही में उसके आये बयान को पढ़कर आपके भीतर भी ऊर्जा का प्रसार होने लगेगा।
शरीर से लाचार इस शख्स ने छूआ शिखर, सबके लिए बना एक अद्भुत मिशाल!
गोविंद ने नम आंखों में कहा – “विकार मेरे हाथों में है लेकिन मेरे लक्ष्य में कोई कमी नही है। अपमान, दर्द और पीड़ा को सहने की आदत डालकर आज इस साईकल यात्रा भी मेरे अंदर की क्षमता को प्रदर्शित करता है।”
गोविंद ने बताया कि जब मैं छोटा था पढ़ने-लिखने का सपना लेकर सरकारी स्कूल पहुंचा तो दाखिला देने से इनकार कर दिया क्योंकि उनके अनुसार मै पढ़-लिख नही सकता था अपाहिज करार कर दिया गया। मुश्किल से एक प्राइवेट स्कूल में एडमिशन हुआ और मै सिर्फ उन्हें आदर्श मानने लगा जो मुझे पसंद करते थे। उस दौर में मैंने पढ़ना लिखना और जिंदगी से लड़ना भी सिखाया लिया। मै बी ए, एम ए सब कर चुका हूं वो भी अपने इन अपाहिज हाथो से। आज मैंने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी यात्रा 1700 किमी की दूरी साईकल चलकर तय कर लिया।