उत्तराखंड में तेजी से बढ़ रहा बाघों का कुनबा, उम्रदराजों को खदेड़ रहे वयस्क बाघ, शिकार के लिए गांवों का रुख कर रहे बाघ।

देहरादून – पीलीभीत के अटकोना गांव में एक किसान के घर में बाघ कई घंटे दीवार पर जमा रहा। उत्तर प्रदेश का ये वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल है। इधर, उत्तराखंड में गांवों में बाघों के धमकने की घटनाएं आम हो गई हैं। पौड़ी जिले में बाघ दो लोगों को शिकार बना चुका है, तो कई गांवों में लोग दहशत में जी रहे हैं। कालागढ़ टाइगर रिजर्व से कई बार बाघ गांवों का रुख कर लेते हैं। बाघों की संख्या में बढ़ोतरी के कई सुखद पहलू हैं, तो चुनौतियां भी खूब आ रही हैं। दरअसल, कम उम्र के बाघ वन क्षेत्र पर कब्जा कर रहे हैं। इससे उम्रदराज बाघों को शिकार के लिए गांवों का रुख करना पड़ रहा है।

उत्तराखंड में बाघों का कुनबा तेजी के साथ बढ़ रहा है। वर्ष 2006 में यहां महज 178 बाघ थे। पिछले 16 सालों में प्रोजेक्ट टाइगर के कारण 382 बाघों की बढ़़ोत्तरी के साथ अब यह संख्या 560 पर पहुंच चुकी है। आबादी के सापेक्ष बाघों को जंगलों में पर्याप्त शिकार नहीं मिल पा रहा है। भारतीय वन्यजीव संस्थान में टाइगर सेल के वैज्ञानिक प्रो. कमर कुरैशी कहते हैं, बाघों की बढ़ती संख्या के कारण जंगलों में बाघों को पर्याप्त जगह नहीं मिल पा रही है।

इनके सामने शिकार का संकट भी आ रहा है। जंगल में बाघिन को 10 से लेकर 60 वर्ग किलोमीटर, जबकि बाघ को 50 से 150 वर्ग किलोमीटर तक का दायरा चाहिए होता है। उत्तराखंड में कार्बेट टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्र 1288.31 वर्ग किलोमीटर, जबकि राजाजी टाइगर रिजर्व करीब 820 वर्ग किमी. में फैला है। इन दोनों वन क्षेत्रों में बाघों का अतिरिक्त दबाव हो गया है। इसलिए बाघ अपने लिए नए क्षेत्र की तलाश में जंगल से बाहर निकल रहे हैं, तो बाघिन शावकों की सुरक्षा के लिए महफूज ठिकाने की तलाश में रहती है।

कठिन है चढ़ाई, फिर भी पहाड़ चढ़ रहा बाघ
प्रो. कमर कुरैशी कहते हैं, जंगलों में बाघों के बीच अस्तित्व के लिए लड़ाई शुरू से होती रही है। जंगल का नियम है, यहां जो शक्तिशाली होगा वही उस क्षेत्र में राज करेगा। इसके चलते वयस्क नर बाघों ने ताकत के बलबूते अपनी टेरेटरी बना ली है, इसमें वह किसी और को नहीं घुसने देते। इससे खासकर उम्रदराज बाघों के लिए संकट आ रहा है। आबादी काफी बढ़ने के कारण बाघों के बीच संघर्ष की स्थिति बढ़ गई है, जबकि उम्रदराज बाघों को शिकार के लिए भी परेशान होना पड़ रहा है। कई दिनों तक भूखे रहने पर मजबूरन बूढ़े बाघ जंगल छोड़कर गांवों का रुख करने के लिए विवश हो रहे हैं। वह कहते हैं, जंगलों में संख्या अधिक होने के कारण ही कई बाघ पहाड़ों का रुख कर रहे हैं। बाघों को पहाड़ की चढ़ाई वाली स्थितियां पसंद नहीं हैं, इसके बाद भी शिकार और आशियाने की तलाश में वह पहाड़ों पर भी चढ़ रहा है।

बाघों के लिए नए ठिकाने बनाने होंगे
प्रो. कमर कुरैशी कहते हैं, लगातार बढ़ रही बाघों की संख्या और गांवों में होते बाघों के प्रवेश रोकने के लिए बाघ संरक्षित क्षेत्रों को बढ़ाना होगा। बाघों को उन जगहों पर शिफ्ट करना होगा, जहां इनकी कमी है। वन क्षेत्रों में बाघों को पर्याप्त शिकार मिले, इसकी व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी।

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