दुनिया के टॉप बारह में उत्तराखंड का नौकरशाह……

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वरिष्ठ पत्रकार अजित राठी की कलम से……

दुनिया में ऐसे लोगों की बड़ी संख्या हैं जिन्होंने तमाम तरह के हथकंडे अपना कर कथित सफलता पाई और शौहरत पाने के लिए मुनादी भी खूब की। लेकिन कुछ शख़्सियत ऐसी भी हैं जिन्होंने लक्ष्य प्राप्ति के लिए संघर्ष के नए मानदंड स्थापित कर एक बड़ा मुकाम हासिल किया और अपनी संघर्ष गाथा को भौतिकवाद और दुनिया की चकाचौंध से पूरी तरह दूर रखा। उत्तराखंड कैडर के 1992 बैच के आईएएस अधिकारी डॉ राकेश कुमार को London School of Hygiene and Tropical Medicine ने “ग्लोबल हेल्थ लीडरशिप प्रोग्राम” के लिए चुना। खास बात उनका चयनित होना नहीं, बल्कि इसकी ख़ासियत यह है कि वर्ल्ड के इस सर्वोच्च संस्थान ने पूरी दुनिया से जिन ग्यारह लोगों को चुना उनमे राकेश कुमार एक है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि यहाँ चयनित होने के लिए आवेदन करना पड़ता है, खुद को उस लायक साबित करना पड़ता है लेकिन डॉ कुमार को वहां के वरिष्ठ वैज्ञानिक ने नॉमिनेट किया और फिर उनका आवेदन लेने London School of Hygiene and Tropical Medicine ने समयावधि ख़त्म होने के बाद उनके लिए दो दिन पोर्टल खोलकर उनसे आवेदन कराया। यहाँ के निदेशक Prof. Peter Piot है जिन्होंने 1976 में इबोला की ख़ोज की थी, जो इस समय UNAIDS के कार्यकारी निदेशक भी है। Prof Piot ने दुनिया में सर्वाधिक कार्य। यहाँ पर इंटरेक्शन करने वाली अन्य हस्तियों में भी Dr David Heymann-Executive Director, Communicable Diseases WHO जैसे नाम शामिल है।यहाँ ग्लोबल हेल्थ डिप्लोमेसी जैसे विषय पर रणनीति बनती है, यहाँ पर विश्व स्तरीय खोज होती है, इसलिए यहाँ विरले लोग ही जाते हैं। मौजूदा समय में संयुक्त राष्ट्र के यूएनडीपी में एडिशनल कंट्री डायरेक्टर काम कर रहे डॉ कुमार “ग्लोबल हेल्थ लीडरशिप प्रोग्राम” की लन्दन में एक सप्ताह की ट्रेनिंग लेकर लौटे है और आगे की ट्रेनिंग जिनेवा और कैप-टाउन में होगी। विशेष बात यह है कि डॉ कुमार वैसे भी चिकित्सा शिक्षा की पढाई करके सिविल सर्विस में आये और यहाँ उन्होंने नेशनल इंटरनेशनल  स्तर के कई बड़े अवार्ड भी जीते हैं। यहाँ यह उल्लेख करना भी आवशयक है कि यह वही राकेश कुमार है जिन्होंने 2015 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय में संयुक्त सचिव रहते हुए देश भर में टीकाकरण से छूटे बच्चों के लिए मिशन इंद्रधनुष जैसी महत्वाकांक्षी योजना लांच की, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री अक्सर अपने सम्बोधन में किया करते है। यह विश्व में पब्लिक हेल्थ की 12 सर्वाधिक सफल और बड़ी योजनाओं में से एक है।  2009 में एक सर्वे हुआ  जिसमे देश के 61 प्रतिशत बच्चों का सम्पूर्ण टीकाकरण होना पाया गया था। 2013  में फिर सर्वे हुआ और पाया कि देश में 65 प्रतिशत बच्चों का ही टीकाकरण हुआ था। यानि एक साल में वृद्धि की दर एक प्रतिशत थी। 2015 में जब बतौर संयुक्त सचिव डॉ राकेश कुमार ने मिशन इंद्रधनुष योजना लांच की तो इसका इम्पैक्ट आया और शोधकर्ता मान रहे हगाई कि 2020 तक इस योजना से पूरे देश में 90 प्रतिशत बच्चे ऐसे होंगे जिनका सम्पूर्ण टीकाकरण हो चुका होगा। मसलन, 2009 से 2013 तक चार प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई लेकिन जब मिशन इंद्रधनुष योजना लागू हुई तो 2020 तक पंद्रह प्रतिशत की बढ़ोतरी होने की पूरी सम्भावना है। इससे भी खास बात यह थी कि ये छूटे हुए बच्चे वो थे जो अर्बन स्लम, ईंट भट्टे और नदियों के किनारे खनन करने वाले और रियल एस्टेट में भवन निर्माण के प्रोजेक्ट्स में मजदूरी करने वाले मजदूरों के हैं जिन पर किसी का ध्यान नहीं जाता है।

 

 

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