नई दिल्ली। हमारी एक भूल आतंकियों के लिए कितनी मददगार बन जाती है। उड़ी इसका एक ताज़ा उदाहरण है। बताया जा रहा है कि हमले से तीन दिन पहले इस हमले का अलर्ट जारी किया गया था। भारत की सुरक्षा एजेंसिया अपने काम के प्रति लापरवाह हैं या उनके पास पुख्ता खुफिया जानकारी का अभाव होता है। ये सवाल जेहन में इसलिए बार-बार आते हैं, क्योंकि आतंकी हमलों के बाद सबसे पहली प्रतिक्रिया या जानकारी यही आती है कि सुरक्षा एजेंसियों के पास इस हमले की ख़ुफ़िया जानकारी मौजूद थी। ऐसे में जवाब साफ है कि कहीं न कहीं हम चूक जाते हैं। उड़ी हमले के बारे में अब जो जानकारी सामने आ रही है उसके मुताबिक हमले से तीन दिन पहले ये सूचना मिली थी की उड़ी के सेना मुख्यालय पर लश्कर के आतंकी किसी बड़ी घटना को अंजाम देने वाले हैं।
उड़ी के पास एलओसी पर मौजूद थे आतंकी
एक अंग्रेजी अखबार के मुताबिक 15 सितंबर 2016 को खुफिया एजेंसियों ने यह जानकारी दी थी कि लश्कर के आठ आतंकी एलओसी पर मौजूद हैं। मौके का फायदा उठाकर आतंकी भारतीय सीमा में दाखिल हो सकते हैं। खुफिया जानकारी में इस बात का भी जिक्र था कि आतंकवादी उड़ी के सैन्य बेस को निशाना बना सकते हैं!
आतंकी 28 अगस्त से कर रहे थे रेकी
खुफिया अधिकारियों के मुताबिक 28 अगस्त से ही उड़ी की ऊंची चोटियों से लश्कर के इन आठ आतंकियों के साथ दूसरे आतंकी संगठन भी लगातार उड़ी सेना मुख्यालय की रेकी कर रहे थे। अधिकारियों का कहना है कि इस तरह की पुख्ता जानकारी के बावजूद सेना मुख्यालय पर हमला होना घोर लापरवाही है। सैन्य मुख्यालय में जिस तरह आतंकी घुसने में कामयाब रहे वो पूरी तरह से लापरवाही को दर्शाता है।
रक्षा मंत्री ने माना,गड़बड़ी हुई
उड़ी में सेना मुख्यालय पर आतंकी हमले पर रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने कहा कि पहली नजर में ऐसा लगता है कि कुछ गड़बड़ी हुई है। सेना के एक अधिकारी के मुताबिक सैन्य मुख्यालय के बाड़े को दो जगह से काटा गया था। उन्होंने कहा कि बाड़े को दो जगहों पर करीब से काटा जाना और उस पर किसी का निगाह न जाना बहुत गंभीर लापरवाही की तरफ इशारा करता है।
विशेषज्ञों ने उठाए सवाल
सुरक्षा विशेषज्ञों ने कहा कि जिस तरह का माहौल जम्मू-कश्मीर में बना हुआ है। उसमें सैन्य अधिकारियों को खुद ब खुद सतर्क रहना चाहिए था। सैन्य अधिकारी किसी खुफिया जानकारी के मिलने तक का इंतजार क्यों करते हैं।
18 जवान हुए थे शहीद
गौरतलब है कि उड़ी हमले को पिछले 26 साल में सेना के ठिकाने पर बड़ा हमला बताया जा रहा है। फिदायीन हमले में सेना के 18 जवान शहीद हो गए थे। हालांकि सेना ने चार आतंकियों को भी मार गिराया था।