गोधरा कांड के 11 दोषियों की फांसी की सजा उम्रकैद में तबदील- गुजरात हाई कोर्ट!

आज गुजरात हाई कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए गोधरा कांड में साबरमती एक्सप्रेस के डिब्बे जलाने वाले 11 दोषियों को मिली फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया है। एसआईटी की स्पेशल कोर्ट की ओर से मामले के आरोपियों को दोषी ठहराए जाने वाले फैसले को चुनौती देने की याचिकाओं पर हाई कोर्ट ने फैसला सुना दिया है। ट्रायल कोर्ट की ओर से दोषी ठहराए गए आरोपियों की मानें तो उन्हें अभी तक इंसाफ नहीं मिला है और इस वजह से उन्होंने हाई कोर्ट में अपील की। आपको बता दें कि साल 2002 में गोधरा कांड हुआ था और 15 वर्षों से यह केस चल रहा है और आज इस केस में एक और अहम फैसला सामने आ गया है।

अभी तक क्या हुआ, जानें
27 फरवरी 2002 को गोधरा रेलवे स्टेशन के पास साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में आग लगने से 59 कारसेवकों की मौत हो गई थी। उस वक्त इस मामले में करीब 1500 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। घटना के बाद पूरे राज्य में दंगे हुए और उसमें 1200 से ज्यादा लोगों की मौत हुई।
तीन मार्च 2002 को ट्रेन जलाने के मामले में अरेस्ट किए गए लोगों के खिलाफ आतंकवाद निरोधक अध्यादेश यानि पोटा लगाया गया। छह मार्च 2002 को दंगों के बाद सरकार ने ट्रेन में आग लगने और उसके बाद हुए दंगों की जांच करने के लिए एक आयोग नियुक्त किया। 25 मार्च 2002 को केंद्र सरकार के दबाव में तीन मार्च को आरोपियों पर लगाए गए पोटा को हटा लिया गया।

18 फरवरी 2003 को एक बार फिर आरोपियों के खिलाफ आतंकवाद संबंधी कानून लगा दिया गया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कोई भी न्यायिक सुनवाई होने पर रोक लगा दी थी। जनवरी 2005 में यूसी बनर्जी कमेटी ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में बताया कि एस-6 में लगी आग सिर्फ एक दुर्घटना थी। 13 अक्टूबर 2006 को गुजरात हाईकोर्ट ने यूसी बनर्जी समिति को अमान्य करार दिया और उसकी रिपोर्ट को भी ठुकरा दिया। साल 2008 में नानावटी आयोग को इस मामले की जांच सौंपी गई और इसमें कहा गया कि आग बल्कि एक साजिश थी।

18 जनवरी 2011 को सुप्रीम कोर्ट ने मामले में न्यायिक कार्रवाई करने को लेकर लगाई रोक हटा ली। 22 फरवरी 2011 को स्पेशल कोर्ट ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जबकि 63 अन्य को बरी कर दिया। एक मार्च 2011 को स्पेशल कोर्ट ने गोधरा कांड में 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई। 2014 में नानावती आयोग ने 12 साल की जांच के बाद गुजरात दंगों पर अपनी अंतिम रिपोर्ट तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल को सौंपी।

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