चमोली : उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी गैरसैंण से लगभग 27 किलोमीटर की दूरी पर स्थित आदिबद्री मंदिर के कपाट 14 जनवरी को मकर संक्रांति के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए खोले जाएंगे। यह कपाट बंद होने के बाद श्रद्धालुओं के लिए एक बार फिर से मंदिर में दर्शन की व्यवस्था होगी। इस अवसर पर एक सप्ताह तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा, जो आदिबद्री क्षेत्र की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करेंगे।
आदिबद्री मंदिर भगवान नारायण को समर्पित है और इसे भगवान विष्णु का सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। मंदिर में भगवान नारायण की काले पत्थर की मूर्ति स्थापित है, जो भक्तों के लिए पूजा का केंद्र है। मान्यता है कि आदिबद्री को भगवान विष्णु का पहला निवास स्थान माना जाता है और यह स्थान बद्रीनाथ से पहले पूजा जाता है। आदिबद्री के दर्शन बिना बदरीनाथ यात्रा को अधूरा माना जाता है।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि आदिबद्री मंदिर समूह को देखने के लिए श्रद्धालु ग्रीष्मकाल से लेकर शीतकाल तक यहां पहुंचते हैं। इसके बावजूद, सरकार से आदिबद्री क्षेत्र को पर्यटन के दृष्टिकोण से विकसित करने की आवश्यकता है। मंदिर समिति के अध्यक्ष जगदीश प्रसाद बहुगुणा ने शासन-प्रशासन से आदिबद्री में पर्यटन को बढ़ावा देने की मांग की है।
किंवदंतियों के अनुसार, आदिबद्री में भगवान विष्णु ने सतयुग, त्रेता और द्वापर युगों में निवास किया था। आदिबद्री मंदिर पहले 16 मंदिरों का समूह हुआ करता था, लेकिन अब यहां 14 मंदिर ही शेष हैं। आदिबद्री न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी इसका महत्व है।