नईदिल्लीः भारत में लगभग छह करोड़ लोग मानसिक विकार से ग्रस्त हैं. यह संख्या दक्षिण अफ्रीका की कुल आबादी से भी अधिक है. देश मानसिक स्वास्थ्य को लेकर चिकित्सकों और खर्च के मामले में काफी पीछे है.
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री जे. पी. नड़्डा ने लोकसभा को बीते मई महीने में नेशनल कमीशन ऑन मैक्रोइकॉनामिक्स एंड हेल्थ 2015 की रिपोर्ट के हवाले से बताया कि साल 2015 तक करीब 1-2 करोड़ भारतीय (कुल आबादी का एक से दो फीसदी) गंभीर मानसिक विकार के शिकार हैं, जिसमें सिजोफ्रेनिया और बाइपोलर डिसआर्डर प्रमुख हैं और करीब 5 करोड़ आबादी (कुल आबादी का पांच फीसदी) सामान्य मानसिक विकार जैसे अवसाद और चिंता से ग्रस्त है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की साल 2011 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत अपने स्वास्थ्य बजट का महज 0.06 फीसदी हिस्सा ही मानसिक स्वास्थ्य पर खर्च करता है. यह बांग्लादेश से भी कम है जो करीब 0.44 फीसदी खर्च करता है. दुनिया के ज्यादातर विकसित देश अपने बजट का करीब 4 फीसदी हिस्सा मानसिक स्वास्थ्य संबंधी शोध, अवसंरचना, फ्रेमवर्क और प्रतिभाओं को इकट्टा करने पर खर्च करते हैं.
सरकार ने नेशनल इंस्टीट्यूट आफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (एनआईएमएचएएनएस) बेंगलुरु के माध्यम से राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण कराया था, ताकि देश में मानसिक रोगियों की संख्या और मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं के उपयोग के पैर्टन का पता लगाया जा सके.
लोकसभा में स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा दिए गए एक जवाब के मुताबिक यह सर्वेक्षण 1 जून 2015 से 5 अप्रैल 2016 तक चला और कुल 27,000 प्रतिभागी इसमें शामिल हुए.
भारत में मानसिक मुद्दों का समाधान करने के लिए स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी है. विशेष रूप से जिला और उप जिला स्तर पर इनकी संख्या बेहद कम है.
दिसम्बर 2015 में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा लोकसभा में दिए गए एक उत्तर के अनुसार, देश में कुल 3,800 साइकियाट्रिस्ट, 898 क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट, 850 साइकियाट्रिक सोशल वर्कर और 1500 साइकियाट्रिकनर्स हैं.
इसका मतलब यह है कि भारत में दस लाख नागरिकों के लिए केवल मनोचिकित्सक उपलब्ध है. डब्ल्यूएचओ के आंकड़े के मुताबिक यह संख्या राष्ट्रमंडल देशों के प्रति एक लाख की आबादी पर 5.6 मनोचिकित्सक से 18 गुना कम है.
इस आंकड़े के हिसाब से भारत में 66,200 मनोचिकित्सकों की कमी है. इसी तरह वैश्विक औसत के आधार पर 100,000 लोगों पर मनोरोगियों की देखभाल के लिए 21.7 नर्सों की जरूरत के हिसाब से भारत को 269750 नर्सों की जरूरत है.
राज्यसभा में 8 अगस्त 2016 को मानसिक स्वास्थ्य देखभाल विधेयक, 2013 ध्वनिमत से पारित किया गया था.
नए विधेयक के मुताबिक अब केंद्र मानसिक स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़े केंद्रों के लिए 30 करोड़ रुपये की बजाए प्रति केंद्र 33.70 करोड़ रुपये जारी करेगा.