उत्तराखंड में अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के लिए नया कानून: सभी मदरसों को लेनी होगी दोबारा मान्यता

देहरादून: उत्तराखंड में मदरसों और अन्य अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के लिए बड़ा बदलाव होने जा रहा है। अब इन सभी संस्थानों को राज्य सरकार द्वारा गठित एक विशेष प्राधिकरण से मान्यता लेना अनिवार्य होगा। मंगलवार को सरकार ने “उत्तराखंड अल्पसंख्यक विधेयक 2025” को सदन पटल पर रखा, जो बुधवार को पारित होकर कानून बन जाएगा।

क्या है नया कानून?

इस अधिनियम के लागू होने के बाद प्रदेश के सभी मदरसों को धार्मिक शिक्षा देने के लिए उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण से पुनः मान्यता लेनी होगी। ये मान्यता शैक्षिक सत्र 2026-27 से पहले अनिवार्य होगी। वर्तमान में उत्तराखंड मदरसा बोर्ड से मान्यता प्राप्त संस्थान सत्र 2025-26 तक पहले की तरह काम कर सकेंगे, लेकिन इसके बाद उन्हें नए नियमों के तहत मान्यता लेनी होगी।

प्राधिकरण की संरचना

सरकार एक नया अधिकार संपन्न प्राधिकरण गठित करेगी जिसका नाम होगा उत्तराखंड राज्य अल्पसंख्यक शिक्षा प्राधिकरण। इसमें होंगे:

एक अध्यक्ष: अल्पसंख्यक समुदाय से शिक्षाविद्, कम से कम 15 साल का शिक्षण अनुभव और 5 साल प्रोफेसर के रूप में काम करने का अनुभव।

कुल 11 सदस्य, जिनमें:

मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी समुदाय से एक-एक सदस्य।

राज्य सरकार का एक सेवानिवृत्त अधिकारी (सचिव या समकक्ष स्तर),

एक अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ता (10+ वर्षों का अनुभव),

महानिदेशक विद्यालयी शिक्षा,

एससीईआरटी का निदेशक,

निदेशक अल्पसंख्यक कल्याण।

सरकार इस प्राधिकरण को सीधे निर्देश दे सकेगी और यदि प्राधिकरण अनुपालन नहीं करता है तो सरकार आदेश लागू करने के लिए स्वतः कार्य कर सकेगी।

मान्यता के लिए शर्तें

प्राधिकरण से मान्यता पाने के लिए संस्थानों को कुछ महत्वपूर्ण शर्तों का पालन करना होगा:

शिक्षण संस्थान की भूमि सोसाइटी के नाम होनी अनिवार्य।

सभी वित्तीय लेन-देन एक वाणिज्यिक बैंक में खोले गए संस्थान के नाम वाले खाते से किए जाएं।

किसी भी छात्र या कर्मचारी को धार्मिक गतिविधियों में भाग लेने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।

शिक्षकों की नियुक्ति प्राधिकरण द्वारा तय न्यूनतम योग्यता के आधार पर होगी।

मान्यता कितने समय के लिए?

प्राधिकरण द्वारा दी गई मान्यता तीन शैक्षिक सत्रों के लिए वैध होगी। इसके बाद संस्थानों को मान्यता नवीनीकरण कराना अनिवार्य होगा।

यह विधेयक राज्य में शिक्षा की गुणवत्ता सुनिश्चित करने, धार्मिक संस्थानों में पारदर्शिता बढ़ाने, और संविधान के मूल्यों के अनुरूप शिक्षा व्यवस्था लागू करने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

यदि यह अधिनियम सख्ती से लागू किया गया, तो यह न केवल मदरसों बल्कि सभी अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों के लिए संस्थागत जवाबदेही और शैक्षिक सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

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