राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने की उत्तराखंड मदरसा बोर्ड को भंग करने की सिफारिश, आयोग ने सीएस को लिखा पत्र।

देहरादून – राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने उत्तराखंड मदरसा बोर्ड को भंग करने की सिफारिश की है। आयोग ने अपने पत्र में स्पष्ट किया है कि बच्चों के मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों के बीच एक विरोधाभासी स्थिति उत्पन्न हो गई है।

आयोग ने कहा कि केवल धार्मिक संस्थानों में जाने वाले बच्चों को आरटीई (राइट्स टू एजुकेशन) अधिनियम, 2009 के तहत औपचारिक शिक्षा प्रणाली से बाहर रखा गया है, जबकि संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा करते हैं। आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने यह भी कहा कि यह सुनिश्चित करना सरकार का कर्तव्य है कि सभी बच्चों को औपचारिक शिक्षा मिले।

उन्होंने यह सिफारिश की है कि मदरसों और मदरसा बोर्ड को राज्य से मिल रहे वित्त पोषण को समाप्त किया जाए और सभी गैर-मुस्लिम बच्चों को मदरसों से निकालकर नियमित स्कूलों में भर्ती कराया जाए। इसके अलावा, मुस्लिम समुदाय के बच्चों, चाहे वे मान्यता प्राप्त हों या गैर-मान्यता प्राप्त, को भी औपचारिक स्कूलों में भेजा जाए।

उत्तरी प्रदेश के 30 मदरसों में वर्तमान में 749 गैर-मुस्लिम बच्चे पढ़ रहे हैं। प्रियंक कानूनगो ने बीते मई में देहरादून के कुछ मदरसों का निरीक्षण किया था, जिसमें कई खामियां पाई गई थीं। उन्होंने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को पत्र लिखकर मदरसा बोर्ड को भंग करने की सिफारिश की है।

उत्तराखंड मदरसा बोर्ड के अध्यक्ष मुफ्ती समून कासमी ने कहा है कि मदरसों में एनसीईआरटी पाठ्यक्रम लागू है। यदि किसी मदरसे में एनसीईआरटी के बजाय धार्मिक शिक्षा दी जा रही है, तो ऐसे मदरसों को बंद किया जाएगा।

यह सिफारिश राज्य में शिक्षा प्रणाली में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है, ताकि सभी बच्चों को समान अवसर मिले।

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