

दिवाली तो देशभर में धूमधाम से मनाई जाती है लेकिन पहाड़ों पर दिवाली के 11 दिन बाद एक बार फिर से दिवाली मनाई जाती है। जिसे कि इगास बग्वाल (Igass Bagwaal) या बूढ़ी दिवाली के नाम से जाना जाता है। पहाड़ों पर लोकपर्व इगास धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि पहाड़ों पर इगास बग्वाल मनाने की शुरूआत कैसे हुई थी ?
Igass Bagwaal : कैसे हुई थी इगास बग्वाल की शुरूआत ?
उत्तराखंड में दिवाली के 11 दिन बाद कार्तिक शुक्ल की एकादशी के दिन लोकपर्व इगास मनाया जाता है। इस बार दिवाली 20 अक्टूबर को मनाई गई। ऐसे में इगास बग्वाल (igass 2025) इस साल दिवाली के 11 दिन बाद यानी कि 1 नंवबर को मनाई जाएगा। इस दिन रात में भैला खेला जाता है। भैलौ या भैला चीड़ की लकड़ियों से बनाया जाता है। रात में इसे जलाकर गोल-गोल घुमाया जाता है। इसके साथ पारंपरिक वाद्य यंत्रों पर मिलकर सभी झूमते हैं।

बात करें इगास बग्वाल की शुरूआत की तो ऐसा कहा जाता है कि पुराने समय में जब माधोसिंह ने तिब्बत युद्ध में जीत हासिल की तो इसकी सूचना गढ़वाल रियासत तक नहीं पहुंच पाई। लेकिन दिवाली का त्यौहार आ गया और ऐसी अफवाहें फैलनेे लगी कि गढ़वाली सेना युद्ध में मारी गई। राजा ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया था उनकी सेना युद्ध हार गई है और सभी मारे गए हैं। इसी कारण राजा ने रियासत में ऐलान करवाया कि इस बार दिवाली नहीं मनाई जाएगी।
शोक में डूबे गढ़वाल में अचानक आई थी खुशी की लहर
गढ़वाली सेना के मारे जाने की अफवाह के कारण राजा द्वारा किए गए ऐलान के कारण पूरा गढ़वाल शोक में डूब गया और पूरे गढ़वाल में दिवाली का त्यौहार नहीं मनाया गया। लेकिन गम में डूबे गढ़वाल में तब खुशी की लहर दौड़ गई जब इस बात की सूचना मिली कि तिब्बत युद्ध में गढ़वाल के सेनापति माधो सिंह भंडारी की जीत हुई है और वो अपनी सेना के साथ जल्द ही श्रीनगर पहुंचेंगे।

इस सूचना के बाद राजा ने एक और ऐलान करवाया कि जब माधो सिंह भंडारी श्रीनगर पहुंचेंगे तब ही दिवाली मनाई जाएगी। दिवाली के 11 दिन बाद सेनापति माधो सिंह भंडारीअपनी सेना के साथ श्रीनगर पहुंचे। जिसके बाद पूरी रियासत को दुल्हन की तरह सजाया गया और पूरे गढ़वाल में दिवाली मनाई गई और तभी से इगास बग्वाल की शुरूआत हुई।



