हरिद्वार : आज चैत्र नवरात्रि का चौथा दिन है, जब मां दुर्गा के चौथे रूप कुष्मांडा की पूजा का महत्व है। इस खास दिन पर हम आपको हरिद्वार स्थित माया देवी मंदिर की महिमा से परिचित कराते हैं, जिसे हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता है। यह मंदिर विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां पर माता सती की नाभि गिरी थी, जो इस मंदिर को एक शक्तिपीठ के रूप में प्रतिष्ठित करता है।
हरिद्वार में गिरी थी माता सती की नाभि:
प्राचीन मान्यता के अनुसार, यहां पर माता सती का एक अंग, यानी उनकी नाभि गिरी थी। भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार, जहां-जहां माता सती के अंग गिरे थे, वे स्थान शक्तिपीठ बन गए। दुनिया में कुल 51 शक्तिपीठ हैं, और इन स्थानों पर पूजा करने से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ऐसा माना जाता है कि हरिद्वार का नाम भी माया देवी के नाम पर पड़ा है। माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता है, और इस मंदिर को सिद्धपीठ के रूप में भी जाना जाता है।
माया देवी मंदिर की विशेषता:
माया देवी मंदिर तंत्र विद्या और शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। यहां की विशेषता यह है कि यह स्थान ब्रह्मांड के केंद्र के रूप में माना जाता है, जहां सती की नाभि गिरी थी। इसके बाद इस स्थान को मायापुरी के नाम से जाना गया। पुराणों के अनुसार, भगवान नारद ने भी यहां आराधना की थी, और उन्हें यहां मां लक्ष्मी के दर्शन हुए थे।
मनोकामनाओं की पूर्ति का विश्वास:
हरिद्वार के स्थानीय लोग नवरात्रि के दौरान माया देवी मंदिर में पूजा करने को अत्यधिक शुभ मानते हैं। उनका मानना है कि इस मंदिर में आराधना करने से उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यहां तक कि सामान्य दिनों में भी भक्तों का विश्वास है कि मां स्वयं उनके दिल की बात समझती हैं और उसे पूरा करती हैं। व्यापारियों के लिए यह स्थान विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि वे अपने कारोबार की शुरुआत मां के दर्शन करने से करते हैं।
सती के देह के टुकड़ों से जुड़े अन्य शक्तिपीठ:
पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब माता पार्वती यज्ञ में अपमानित हुईं, तो उन्होंने यज्ञ कुंड में कूदकर सती की अवस्था को प्राप्त किया। इसके बाद भगवान शंकर ने रौद्र रूप धारण कर सती के शरीर को ब्रह्मांड में ले जाकर उसकी देह के टुकड़े किए। जहां-जहां सती के अंग गिरे, वे स्थान शक्तिपीठ बन गए। हरिद्वार में माता सती की नाभि गिरी थी, जिससे यह स्थान और भी महत्वपूर्ण हो गया है।
धन-संपत्ति और शत्रु से मुक्ति का स्थान:
माया देवी मंदिर को लक्ष्मी का रूप माना जाता है, और यह भक्तों के लिए धन-संपत्ति और शत्रुओं से मुक्ति का स्थान है। नवरात्रि में यहां पूजा करने से भक्तों को विशेष आशीर्वाद मिलता है, और उनकी वित्तीय स्थिति में सुधार होता है। मंदिर में पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है, और दुश्मनों से भी छुटकारा मिलता है।
भैरव के दर्शन से होती है पूजा की पूर्णता:
माया देवी मंदिर में दर्शन के बाद भक्तों का मानना है कि अगर वे माया देवी के पहरेदार, भैरव के दर्शन कर लेते हैं, तो उनकी पूजा पूरी मानी जाती है। यहां देवी के अन्य रूपों के दर्शन भी होते हैं, और भक्त भगवान शंकर की पूजा भी इस परिसर में कर सकते हैं।
माया देवी मंदिर की त्रिकोणीय स्थिति:
माया देवी मंदिर की एक खास बात यह है कि यह त्रिकोणीय स्थिति में स्थित है, जहां तीन सिद्ध देवियों के मंदिर हैं। उत्तरी कोण में मां मनसा देवी, दक्षिण में शीतला देवी और पूर्वी कोण में चंडी देवी का मंदिर है। इस त्रिकोणीय क्षेत्र में स्थित इन मंदिरों की विशेषता यह है कि जो भी भक्त इन मंदिरों में पूजा करता है, उसकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।