देहरादून: उत्तराखंड में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को लेकर स्थिति अभी भी स्पष्ट नहीं है। पंचायती राज अधिनियम में संशोधन का अध्यादेश अब तक राजभवन में लंबित है, जिस पर सरकार की निगाहें टिकी हुई हैं। अगर जल्द हरी झंडी मिलती है, तो इसी माह के अंत तक अधिसूचना जारी होने की संभावना जताई जा रही है।
फिलहाल प्रदेश की पंचायतें प्रशासकों के भरोसे चल रही हैं। नवंबर-दिसंबर 2024 में पंचायतों का कार्यकाल समाप्त हो चुका था, लेकिन चुनाव प्रक्रिया पूरी न हो पाने के कारण सरकार को ग्राम प्रधानों, क्षेत्र पंचायत प्रमुखों और जिला पंचायत अध्यक्षों को ही प्रशासक नियुक्त करना पड़ा।
उत्तराखंड के 13 जिलों में से 12 जिलों में पंचायत चुनाव एक साथ होते हैं, जबकि हरिद्वार में ये चुनाव उत्तर प्रदेश की तर्ज पर होते हैं। 12 जिलों की पंचायतों का कार्यकाल 28 नवंबर, 30 नवंबर और 1 दिसंबर को समाप्त हो चुका है, लेकिन ओबीसी आरक्षण के निर्धारण और अधिनियम संशोधन की प्रक्रिया अधूरी होने के कारण चुनाव नहीं कराए जा सके।
पंचायती राज अधिनियम के अनुसार, प्रशासकों का कार्यकाल अधिकतम छह महीने का होता है, जो इसी मई महीने में पूरा हो रहा है। ऐसे में सरकार के पास अब फैसला लेने के लिए ज्यादा वक्त नहीं बचा है। चुनाव के लिए पहले अधिनियम में संशोधन को मंजूरी, फिर ओबीसी आरक्षण तय करना और अंत में अधिसूचना जारी करना अनिवार्य है।
राज्य निर्वाचन आयोग के आयुक्त सुशील कुमार ने कहा है कि आयोग चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार है और अब सरकार की ओर से आवश्यक औपचारिकताओं को पूरा करने का इंतजार है। आयोग ने मतदाता सूचियों का पुनरीक्षण पहले ही कर लिया है। अब सिर्फ संशोधित अधिनियम और आरक्षण निर्धारण की मंजूरी बाकी है।
सूत्रों के अनुसार, जैसे ही राजभवन से अध्यादेश को मंजूरी मिलती है, सरकार चुनाव प्रक्रिया को तेज गति से आगे बढ़ा सकती है।