रिपोर्ट: कुलदीप राणा, रुद्रप्रयाग
उत्तराखण्ड सरकारें भले हर गांव को सड़क से जोड़ने के ढोल क्यों न पीट रही हो मगर हकीकत तो यह है कि आज भी सूबे के सैंकड़ों गाँव सड़क सुविधा से वंचित हैं। स्थिति यह है कि इन गावों के ग्रामीणों को मील दूर पैदल चलकर अपनी रोजमर्रा की जरूरतों को पूरा करने के लिए विवश हैं। खास तौर पर प्रसव वेदन से पीड़ित महिलाओं और बुजुर्गो को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
जनपद रुद्रप्रयाग के विकासखण्ड जखोली भरदार पट्टी के लिए वर्ष 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के द्वारा सुमाड़ी-विराणगांव-जाखाल मोटरमार्ग की स्वीकृत प्रदान की गई थी लेकिन आठ वर्ष बीत जाने के बाद भी आज भी सेमा, लेखगांव, बौंडा, लडियासू, वीराण गावं, जलाखू और जाखाल के ग्रामीणों को सड़क नसीब नहीं हो पाई है। यहां के ग्रामीणों को आज भी 5 किमी. पैदल चलना पड़ता है। ग्रामीण महिलाओं का कहना है कि कई बार प्रसव पीड़ा होने पर अस्पताल ले जाते समय रास्ते ही बच्चे को जन्म दे देती हैं जिससे पीड़िता को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जबकि कभी स्थिति यह भी हो जाती है कि कई बीमार लोगों को अस्पताल ले जाते समय सड़क के अभाव में रास्ते में दम तोड़ देते हैं।
लम्बे समय से क्षेत्रीय जनता जन प्रतिनिधियों के कोरे अवश्वासनों से तंग आगर स्वय प्रशासन से गुहार तो लगा रही है लेकिन प्रशासन सड़क निर्माण आपसी गांवों का विवाद व वन अधिनियम को रोड़ा बता रही है।
चुनावों में भले ही नेता और जनप्रतिनिधि गांवों के विकास और आधारभूत सुविधाओं को विकसित करने के वादे करते नहीं थकते हैं लेकिन चुनाव जीतने के बाद इन ग्रामीणों को इनके हाल पर छोड़ देने की प्रवृत्ति आज भी खत्म नहीं हो पाई है। जबकि जिम्मेदार विभाग भी धन एवं कानूनी दांव पेंचों में उलझा रहता हैं जिसका खामियाजा ग्रामीणों को भुगतना पड़ता है।