पीके साहब कंहा हो,कंही सो तो नहीं गए पीके?

फाइल फोटो……………
नरेन्द्र मोदी के पुराने रणनीतिकार पीके यानि प्रशांत किशोर को कौन नहीं जनता। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री और नीतीश कुमार को बिहार का मुख्यमंत्री बनवाने के बाद राजनीतिक दलों में ब्रांड मैनेजर बन गए प्रशांत किशोर पता नहीं आजकल कहां हैं। चुनाव का दौर आ रहा है, लेकिन अपने पीके हैं कि कहीं दिखाई-सुनाई ही नहीं पड़ रहे हैं। पीके ने पता नहीं किस नक्षत्र में उत्‍तर प्रदेश में कांग्रेस को जिताने का ठेका लिया था, लेकिन अब उन्‍हें अपनी ब्रांडिंग का ठेका किसी को देने की नौबत आ गई है।
कैसे बने राजनीतिक दलों के ब्रांड मैनेजर

दरअसल, फिट बैठे समीकरण में नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के पीएम और सीएम बन जाने के बाद पीके की चुनाव जिताऊ ठेकेदारी के चर्चे दूर तक होने लगे थे। कार्यकर्ता और संगठन के बिना भी केवल नारों से चुनाव जिता देने की प्रशांत किशोर की कीर्ति ऐसी फैली कि गरीबों के यहां खाना खाने वाले कांग्रेस के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष राहुल गांधी भी झांसे में आ गए। उत्‍तर प्रदेश में कार्यकर्ता और कमजोर संगठन जूझ रहे कांग्रेस को जिताने का ठेका प्रशांत किशोर को दे दिया।
यूपी चुनाव में गड़बड़ा गई थी पीके की ब्रांडिंग

विधानसभा चुनाव जिताने का ठेका लेने वाले पीके उत्‍तर प्रदेश में चुनाव से कुछ समय पहले पार्टी का हश्र देखने के बाद अपनी ब्रांडिंग बचाने के लिए कांग्रेस से किनारा करने का हरसंभव प्रयास किया था, लेकिन राहुल गांधी तक की ब्रांडिंग गड़बड़ा देने वाले कांग्रेसी बख्‍शने को छोड़ने को तैयार नहीं हुए। पीके ने हरसंभव प्रयास किया कि कांग्रेस यूपी में उनसे जिताने की जिम्‍मेदारी छीन ले, लेकिन कांग्रेस को मेहनत से बरबाद करने वाले कर्ताधर्ता पीके पर भी मेहनत कम नहीं करना चाहते थे।
मात्र अपने नारों से जीत दिला चुके प्रशांत किशोर भी बड़े जोर-शोर से बिहार से अपना बोरिया बिस्‍तर लेकर यूपी पहुंच गए। जिताने वाले नारे गढ़ने लगे, लेकिन 27 साल से कितनों को गढ़ चुकी यूपी कांग्रेस की हालत में कोई सुधार नहीं हुआ। राहुल ने प्रशांत को सारे अधिकार दिए, उनके हिसाब से बदलाव भी किए, पैसे भी दिए, लेकिन कांग्रेस उत्‍तर प्रदेश में ठीक से खड़ी नहीं हो पाई। पीके के नारे भी लोट गए। अलबत्‍ता कई जगह किसान-ग्रामीण कांग्रेस की खाट जरूर उठा ले गए, जो राहुल गांधी की खाट सभा में आए थे कांग्रेस की खटिया खड़ी कर ले गए।
कांग्रेस की खड़ी होती खाट को देखकर पहली बार पीके को लगा ठेका गलत हो गया है। पीके कांग्रेस को तो यूपी में आबाद नहीं कर पाए, लेकिन मोदी-नीतीश को जिताने की जो ब्रांडिंग बनी थी, वह खत्‍म हो गई। राहुल भइया पीके को अपने स्‍तर पर लेकर चले गए। पता नहीं आजकल पीके कहां हैं? किससे अपनी ब्रांडिंग करवा रहे हैं? ऐसा लग रहा है पीके फिलहाल कहीं पड़े हुए हैं। उन्‍हें अपनी ब्रांडिंग की चिंता हो रही होगी।
 राजनितिक दलों में पीके डिमांड  
सुना है कि राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर अब वाईएसआर कांग्रेस के साथ जुड़ गए हैं. वाईएसआर अध्यक्ष और आंध्र प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता वाई एस जगनमोहन रेड्डी ने पार्टी नेताओं के साथ एक बैठक की जिसमें प्रशांत किशोर मौजूद थे.
यह भी कहा जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी के पुराने रणनीतिकार प्रशांत किशोर को गुजरात कांग्रेस रिझाने की कोशिश कर रही है. राज्य में इसे लेकर राजनैतिक चर्चा गर्म है. गुजरात कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शंकरसिंह वाघेला ने ट्वीट करके चुनावों में राज्य में पार्टी के लिए प्रशांत किशोर जैसे रणनीतिकार की जरूरत बताई है. एक तरह से उन्होंने साफ कर दिया कि पार्टी मोदी के एक वक्त के करीबी चुनावी रणनीतिकार को गुजरात में भी लुभाने का प्रयास कर रही है. पूरी पार्टी इससे सहमत दिख रही है.

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