अगर आप छोटी सोच वाले “आदमी” है तो इसे न पढ़े….

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मानवता का कोई धर्म नही होता। तो कैसे ये समाज औरतों के लिए अमानवीय है। क्यों सिर्फ औरतों के पहनावे, धार्मिक स्थलों पर जाने और हां उनके अधिकारों के इस्तेमाल पर पाबंदी है। क्या देश के आदमी इस बात से डरते है कि अगर महिलाएं पर पाबंदी खत्म कर दी जाएगी तो उनका आदमी होना कुछ कम हो जाएगा।

 
एक मिनट इससे पहले आप मुझे देशद्रोही करार दे तो पहले ही स्पष्ट कर दूं। मेरी दुश्मिनी किसी धर्म से नही, किसी आदमी से नही है और धर्मगुरूओं से भी नही है। मैं सिर्फ समाज के अभिन्न हिस्से औरतों के अधिकारों के लिए चिंतित हूं। मेरे इन विचारों को देशद्रोही न समझा जाए।

 

धर्म के नाम पर अपनी बात मनवाना कितना सही लगता है आपको!! ये प्रश्न अक्सर बुद्धिजीवियों के मन में हिलोरे खाता होगा। क्या किसी भी धर्म की किताब में दूसरों को नीचा दिखाना लिखा होगा। मुझे तो नही लगता। महिलाओं को अक्सर धर्म का हवाला देते हुए चुप रहने की नसीहत दी जाती है। उन्हें कहा जाता है कि आप औरत है अपनी हद में रहे। तो क्या सिर्फ औरतों के लिए ही हदें बनाई गई है। आदमी हदों से परे है।

 

बात यहां महिलाओं के अधिकार के बारे में हो रही है। हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाइ चाहे और भी कोई धर्म हो उसमें महिलाओं के अधिकारों और उसे सम्मान न देने की बात तो नही लिखी हो सकती। तो फिर कैसे ये जो धर्म का ज्ञान देने वाले बहरूपिये है वो किसी महिला के साथ हो रही क्रूरता को बढ़ावा दे सकते है।

 

धर्म और आस्था दानों एक सिक्के के दो पहलू है। और इन दोनों पहलू को आधार बनाकर खूब राजनीति होती है। बहस होती है। पर नतीजा कुछ भी नही निकल पाता।
कभी कुछ दिनों पहले एक मंदिर में प्रवेश के लिए महिलाओं के पहनावे पर प्रश्न चिन्ह लग गए थे। पहनावे को आस्था से कैसे जोड़ सकते है। क्या कपड़ों की लंबाई आपकी आस्था की गहराई बताएगी। ऐसा कैसे हो सकता है। धर्म में तो ऐसा नही सिखाता।

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अब तीन तलाक को ही ले लीजिए। लोगों ने तीन तलाक को मजाक बना लिया है। और हमारे धर्मगुरू ये तो धर्म के नियम अपने हिसाब से तय कर रहे है। कैसे तीन तलाक से महिला अधिकार को न्याय मिल सकता है। धर्म का पाठ पढ़ाने वालो को क्या इस बात की खबर नही कि एक नियम कितनी महिलाओं की जिदंगी बर्वाद कर सकता है। और कर चुका है। वैसे तो खुले मंच में महिला सशक्तीकरण की बाते होती है तो कैसे तीन तलाक का दुख झेल रही महिला इस नियम से खुश हो सकती है। तीन तलाक कैसे महिलाओं के लिए बेहतर है। बीते दिन इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तीन तलाक को असंवैधानिक बताया था। और इसे महिलाओं के अधिकारों का हनन बताया था। अब देखिए कैसे मुस्लिम धर्मगुरू इस फैसले से सहमत नही है।

 

धर्मगुरूओं की मंशा को देखकर क्या ये नही लग रहा किये मुस्लिम समाज की महिलाओं को बेड़ियों में बांध कर रखना चाहते है। उनके अधिकारों को सीमित कर रहे है। मुस्लिम समाज में जिस तरह आदमी को आजादी है वैसी आजादी महिलाओं को क्यो नही। जबकिं सच तो ये है कि पवित्र कुरान में भी तलाक शब्द को अपवित्र बताया है।
विडवंना ही है ये देश में कि औरतों को हदों में रहना है और यहां के मर्द के लिए कुछ हद नही तय की गई है। कैसे न्याय दे पाएंगे आप उन महिलाओं और बच्चियों को जो आज तीन तलाक के नाम पर अपने घरवालों से ठगी गई है।

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धर्म के नाम पर आडम्बर करना बंद करिए। हमें एक मजबूत समाज की जरूरत है, जहां औरतें अपने अधिकारों को जी सके और अपने होने पर अफसोस न जताए। एक बेहतर समाज का निर्माण यहां की सशक्त औरत को बेहतर जिंदगी देकर ही बनाया जा सकते। नियम फतवे तो कई बनते है और उनमें सुधार भी किया जा सकता है। पर अगर आप अपनी महिलाओं को अच्छी जिंदगी नही दे पा रहे तो माफ कीजिएगा आपको बुरा लग सकता है,धर्म को मानना आप बंद ही कर दे। क्योंकि धर्म इतना संकुचित नही हो सकता जो महिलाओं को जीने का हक ही न दे।

 

अगर आप अपनी औरतों को किसी नियम में बांधना चाहेगें तो जान लीजिए पानी अगर सिर के ऊपर हो जाए तो खतरे की चपेट में आप भी आ जाएंगे। धर्म का सम्मान करिए उसे थोपिए मत। और याद रखिए हमें आप से खैरात में अधिकार नही चाहिए, ये हमारा हक है तो हमें अपने हक चाहिए। समानता का हक!!

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