गणेश चतुर्थी के ठीक एक दिन पहले पति की दीर्घायु की कामना के लिए सुहागिन महिलाएं हरतालिका तीज पर निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाएं, युवतियां गौरी-शंकर का पूजन करती हैं। हिन्दी तिथि के हिसाब से ये व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को रखा जाता है जो रविवार यानी 4 सितंबर को मनाया जाएगा।
व्रत और पूजा का मुहूर्त : पंडितों की मानें तो इस बार हरितालिका तीज का पर्व काफी सुखद संयोग लेकर आया है। इस बार तृतीया तिथि 4 सितंबर को सुबह 5.00 बजे से शुरू होगी। इसलिए व्रत रखने वाली महिलाएं और युवतियां इससे पहले ही सरगी कर सकती हैं। इसके अलावा पूजा करने का सही मुहूर्त शाम 6 बजकर 04 मिनट से रात 8 बजकर 34 मिनट तक है। इस दौरान की गई पूजा लाभदायी मानी जाएगी।
व्रत की महत्ता : इस बार हरितालिका तीज पर तृतीया संग चतुर्थी और हस्त नक्षत्र का भी संयोग बन रहा है और ऐसा संयोग व्रती के हर मनोकामना को पूर्ण करने वाला माना जा रहा है। इस पूजा को करना जितना कठिन है, उतना ही कठिन है इसका व्रत रखना। क्योंकि इस व्रत को भी बगैर पानी के रखा जाता है। उत्तर भारत में हरितालिका तीज धूमधाम से मनाई जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने वाली सुहागिन महिलाओं का सौभाग्य अखंड बना रहता है और उसे सात जन्मों तक पति का साथ मिलता है।
पूजा की विधि : हरितालिका तीज का व्रत भी निराहार और निर्जला रहकर किया जाता है। महिलाएं व युवतियां भगवान शिव को गंगाजल, दही, दूध, शहद आदि से स्नान कराकर उन्हें फल समर्पित करती हैं।
रात्रि के समय घरों में सुंदर वस्त्रों, फूल पत्रों से सजाकर फुलहार बनाकर शिव और पार्वती की पूजा की जाती है। गांव-शहर के प्रमुख बाजारों में गौरा पार्वती मिलते हैं। तीज पर पार्वती जी के इसी स्वरूप की पूजा की जाती है। सुबह 4.00 बजे उठकर बिना बोले नहाना होता है और फिर दिन भर निर्जला व्रत रखना पड़ता है।
पूजन सामग्री : हरतालिका तीज पर पूजन के लिए – गीली काली मिट्टी या बालू रेत, बेलपत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल एवं फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनैव, नाडा, वस्त्र, सभी प्रकार के फल एवं फूल, फुलहरा (प्राकृतिक फूलों से सजा), मां पार्वती के लिए सुहाग सामग्री – मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, बाजार में उपलब्ध सुहाग पुड़ा आदि, श्रीफल, कलश, अबीर, चन्दन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम, दीपक, घी, दही, शक्कर, दूध, शहद पंचामृत के लिए आदि।
हरतालिका तीज का इतिहास : इस व्रत को सबसे पहले शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए पार्वती जी ने शादी से पहले किया था। इसलिए इस व्रत की बहुत मान्यता है। कहते हैं मां पार्वती ने जंगल में जाकर भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कई सालों तक ताप किया था। और उन्होंने ये व्रत बिना पानी पिये लगातार किया था। जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकारा था। यह शिव-पार्वती की आराधना का सौभाग्य व्रत है, जो महिलाओं के लिए बेहद पुण्य और फलदायी माना जाता है।