

देहरादून। चार धामों वाले उत्तराखंड में बदरी, केदार, गंगोत्री, यमुनोत्री तो आस्था केंद्र हैं ही उत्तराखंड जहां कंकर-कंकर में शंकर है वहां तमाम ऐसे सिद्धपीठ है जहां सिर झुकाने से ही मनोकामना पूरी हो जाती है। पौराणिक आख्यानों के अनुसार सती के अंग जहां-जहां भी गिरे है, वहां-वहां सिद्ध पीठ की संरचना हुई। उत्तराखंड में भी ऐसे कई सिद्धपीठ है जो भक्तों के लिए आधार केंद्र बने हुए है, जहां जाकर उन्हें अपनी मान्यता समर्पित करनी होती है और माता उनकी मनोकामनाएं पूरी करती है। ऐसे प्रमुख सिद्धपीठों मे है मां सुरकण्डा देवी का मंदिर जो कि उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल सुरकुट पर्वत पर स्थित है। भौगोलिक दृष्टि से यह मंदिर धनोल्टी और काणाताल के बीच स्थित है ।
चंबा- मसूरी रोड पर कद्दूखाल कस्बे से लगभग डेढ़ किमी पैदल चढ़ाई चढ़ कर मां सुरकंडा मंदिर में पहुंचा जा सकता है। यह मंदिर समुद्रतल से करीब तीन हजार मीटर की ऊंचाई पर बना है । मंदिर में मां दुर्गा के एक रूप की स्थापना की गई है। नौ देवी के रूप में यह मंदिर लोगों की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।
सुरकंडा देवी मंदिर 51 सिद्ध शक्ति पीठों में से एक है जहां देवी काली की प्रतिमा प्रतिष्ठित है । मंदिर की दिव्यता, भव्यता और प्राचीनता के उल्लेख केदारखंड और स्कन्दपुराण में भी मिलते है। मां का यह मंदिर ठीक पहाड़ की चोटी पर है । सुरकंडा देवी मंदिर घने जंगलों से घिरा हुआ है और इस स्थान से उत्तर दिशा में हिमालय का सुन्दर दृश्य दिखाई देता है। मंदिर परिसर से सामने बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री अर्थात चारों धामों की पहाड़ियां नजर आती हैं । यह एक ऐसा नजारा है जो कि दुर्लभ है | मां सुरकंडा देवी को समर्पित मंदिर के अतिरिक्त भगवान शिव एवं हनुमान को समर्पित मंदिर की स्थापना भी इसी मंदिर परिसर में हुई है । चंबा प्रखंड का जड़धारगांव सुरकंडा देवी का मायका माना जाता है । यहां के लोग विभिन्न अवसरों पर देवी की आराधना करते हैं। मंदिर की समस्त व्यवस्था वही करते हैं। सभी सिध्पीठो में से देवी सुरकंडा का महातम्य सबसे अलग है । देवी सुरकंडा सभी कष्टों व दुखों को हरने वाली हैं । नवरात्रि व गंगा दशहरे के अवसर पर देवी के दर्शन से मनोकामना पूर्ण होती है । यही कारण है कि सुरकंडा मंदिर में प्रतिवर्ष गंगा दशहरे के मौके पर विशाल मेला लगता है ।
सुरकंडा देवी मंदिर की एक विशिष्ठता है, वह वहां दिये जाने वाले प्रसाद के रूप में दी जाती है भक्तों को प्रसाद के रूप में दी जाने वाली रौंसली(वानस्पतिक नाम टेक्सस बकाटा) की पत्तियां औषधीय गुणों भी भरपूर होती हैं । माना जाता है कि इन पत्तियों से घर में सुख समृधि आती है । क्षेत्र में इसे देववृक्ष का दर्जा हासिल है । इसीलिए इस पेड़ की लकड़ी को इमारती या दूसरे व्यावसायिक उपयोग में नहीं लाया जाता।



