सीनियर बीजेपी लीडर यशवंत सिन्हा का आरोप,जेटली ने किया अर्थव्यवस्था का कबाड़ा

पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने नोटबंदी, जीएसटी जैसे फैसलों के बाद लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को लेकर मोदी सरकार पर सवाल उठाए हैं। वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने वित्त मंत्री अरुण जेटली पर जोरदार निशाना साधा। पूर्व वित्त मंत्री यशवंत सिन्हा ने अर्थव्यवस्था की तस्वीर पेश करते हुए अंग्रेजी अखबार में एक लेख लिखा है। इस लेख में उन्होंने कहा कि सरकार ने 2015 में जीडीपी की गणना करने के तरीके में बदलाव किया था, इस तरीके से गणना करने पर जीडीपी रेट में 2 प्रतिशत का अंतर आता है.

 “वित्त मंत्री ने अर्थव्यवस्था का जो ‘कबाड़ा’ किया है, उस पर अगर मैं अब भी चुप रहा तो राष्ट्रीय कर्तव्य निभाने में विफल रहूंगा। मुझे यह भी मालूम है कि जो मैं कहने जा रहा हूं बीजेपी के ज्यादातर लोगों की यही राय है पर वे डर के कारण बोल नहीं पा रहे हैं।”

उन्होंने लिखा कि रेड (Raid) राज आजकल आम बात हो गई है. इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के पास कई केस हैं जिनसे लाखों लोग जुड़े हैं. उन्होंने लिखा, “ईडी और सीबीआई के हाथ भी खाली नहीं हैं. लोगों के मन में डर पैदा करने का खेल शुरू हो गया है.”

‘प्रधानमंत्री दावा करते हैं कि उन्होंने गरीबी को काफी करीब से देखा है। ऐसा लगता है कि उनके वित्त मंत्री ओवर-टाइम काम कर रहे हैं जिससे वह सभी भारतीयों को गरीबी को काफी नजदीक से दिखा सकें।’

सिन्हा के इस आर्टिकल में देश की अर्थव्यवस्था से ज्यादा वित्तमंत्री अरुण जेटली पर निशाना साधा है. उन्होंने लिखा, कि अरुण जेटली को अन्य कई मंत्रालयों की जिम्मेदारी भी दी गई है जो कि वित्त मंत्रालय से उनका ध्यान भटका रही है


उन्होंने लिखा, ‘इस समय भारतीय अर्थव्यवस्था की तस्वीर क्या है? प्राइवेट इन्वेस्टमेंट काफी कम हो गया है, जो दो दशकों में नहीं हुआ। औद्योगिक उत्पादन ध्वस्त हो गया, कृषि संकट में है, निर्माण उद्योग जो ज्यादा लोगों को रोजगार देता है उसमें भी सुस्ती छायी हुई है। सर्विस सेक्टर की रफ्तार भी काफी मंद है। निर्यात भी काफी घट गया है। अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्र संकट के दौर से गुजर रहे हैं। नोटबंदी एक बड़ी आर्थिक आपदा साबित हुई है। ठीक तरीके से सोची न गई और घटिया तरीके से लागू करने के कारण जीएसटी ने कारोबार जगत में उथल-पुथल मचा दी है। कुछ तो डूब गए और लाखों की तादाद में लोगों की नौकरियां चली गईं। नौकरियों के नए अवसर भी नहीं बन रहे हैं।’

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