सियासी सपनों वाला “गैर”सैंण…

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विज़न2020न्यूज:उत्तराखंड को बने 16 बरस हो गए है। कितने ही मुख्यमंत्री आ गए निकल गए। पर अभी तक राज्य को स्थायी राजधानी देने पर सभी नाकाम ही साबित हुए। ये बात और है कि गैरसैण के नाम पर राजनेता वोट बटोरते रहे है पर सच तो यही है यहां के नेताओं ने प्रदेश के आंदोलनकारियों और शहीदों के सपनें को गैर बना दिया है।
उत्तराखंड राज्य यहां के शहीदों और आंदोलनकारियों के संघर्ष का ही नतीजा है। जब उत्तराखंड बना तो राज्य आंदोलनकारियों ने पहाड़ की जनता की राय लेकर गैरसैण को राजधानी बनाना तय किया था। ये बात 16 साल पुरानी है। कुछ आंदोलनकारियों ने राज्य के लिए लड़ते लड़ते प्राण त्याग दिए। और बदले में सिर्फ एक ही चीज चाही कि पहाड़ की राजधानी कही पहाड़ ही बने। जिसके लिए गैरसैण को चुना। पर अफसोस आज इस बात का है कि शहीदों का सपना सपना ही रह गया और उसका नतीजा ये निकला कि उत्तराखंड आज स्थायी राजधानी के लिए तरस रहा है।
कांग्रेस हो या भाजपा दोनों ही राज्य को राजधानी देने के नाम पर सिर्फ जुमलेबाजी ही करते रहे है और बयान देकर उत्तराखंड की जनता को ठगते रहे कि जल्द ही गैरसैण को स्थायी राजधानी बनाया जाएगा। पर परिणाम ढ़ाक के दो पात।
न तो मौजूदा कांग्रेस सरकार ही गैरसैण के साथ अपनापन दिखाकर इसे राजधानी का अमलीजामा पहना पायी तो भाजपा की बात तो छोड़ दे। वर्तमान सरकार के मुख्यमंत्री हरीश रावत यूं तो जनता के हमदर्द बनने की बड़ी बड़ी बाते कहते है पर यहां की जनता की प्रथम इच्छा को हमेशा ही दरकिनार किया है। मुख्यमंत्री ने हाल में ही गैरसैण पर बयान देते हुए कहा था कि गैरसैण भावनाओं से जुड़ा मुद्दा है अगर गैरसैण के साथ वाकई इन राजनेताओं का कोई भावात्मक लगाव होता तो क्या अभी तक गैससैण के साथ जो सौतेला व्यवहार किया जा रहा है वो होता। जबाव अगर ईमानदार से दिया जाएगा तो एक बड़ा न ही मिलेगा।
राजनेता तो बस गैरसैण के नाम पर बयानबाजी करते आए है और करते ही रहेगे पर किसी में इतना दम नही कि हमारें शहीदों के इस सपने को सच कर सके। उत्तराखंड के वीरों ने यहीं कल्पना कि थी कि गैरसैंण राज्य की राजधानी बन जाए पर हमारे माननीय राजनीति के खेल में ही व्यस्त हो गए और यहां के लोगों को भेटस्वरूप लंबे लंबे भाषण दिए।
उत्तराखंड के नेताओं के लिए गैरसैण पिकनिंक स्पॉट से कम नही। कोई विशेष सत्र को रखना हो तब यहां दो दिन पहले लोगों को भेजकर इमारतों पर लीपा पोती हो जाती है। और पैकअप के बाद फिर गैरसैण अंजान बन जाता है। वीरचंद्र सिंह गढ़वाली विधानसभा भवन की चकाचौंध गुमनामी में चली जाती है। 26 एकड़ के इस भवन में कुछ दिन तो नेताओं और फरियादियों की आवाज गूंजती है और सत्र के बाद फिर पसर जाता है सूनापन।
क्या ऐसी ही कल्पना की थी गैरसैंण की हमने और हमारे आंदेलनकारियों ने! नही न ।तो क्यों आज भी प्रदेश के नेता राजनीति राजनीति खेल कर गैरसैण के साथ ये व्यवहार कर रहे है। अभी तक गैरसैंण ने इंतजार ही किया है और वर्तमान परिस्थितायों से ये तो साफ है कि इंतजार अभी बहुत लंबा है।

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