हंसल मेहता का नाम आते ही शाहिद, अलीगढ़ और सिटीलाइट्स जैसी फिल्में ध्यान में आती हैं. इनकी फिल्मों में इंटरटेनमेंट तो होता ही है साथ में जिंदगी से जुड़े हुए मुद्दे भी होते हैं. इस फिल्म में जहां एक तरफ नेशनल अवॉर्ड विनिंग फिल्में बना चुके हंसल मेहता हैं, तो दूसरी तरफ तीन बार नेशनल अवॉर्ड जीत चुकी कंगना रनौत. फिल्म की रिलीज से पहले ही प्रोमोशन के दौरान कंगना कई कंट्रोवर्सी भी इससे जुड़ चुकी हैं. देखना ये होगा कि असल में फिल्म कैसी है और इसे देखने सिनेमाघर जाना चाहिए या नहीं-
कहानी
यह कहानी अमेरिका में रहने वाली तलाकशुदा लड़की प्रफुल पटेल की है, जो अपने माता-पिता के साथ रहती है. यह लड़की हाउसकीपर के रूप में होटल में काम करती है. उसके माता-पिता चाहते हैं कि वो दोबारा शादी कर ले, लेकिन उसका मन अब रिश्तों से उठ चुका है. जब वह अपनी दोस्त से मिलने लॉस वेगास जाती है, तो वहां एक जुआखाने में एक बार तो जीतती है, लेकिन उसके बाद बहुत सारा पैसा हार जाती है. यहां तक कि कुछ लोगों से कर्ज लिया हुआ पैसा भी हार जाती है और अब वो लोग उस पैसे की भरपाई प्रफुल से करवाना चाहते हैं. इसके लिए प्रफुल लूटपाट का काम शुरू कर देती है. वह अमेरिका में बैंक लूटने लगती है. इसी बीच उसके घरवाले एक लड़के के साथ उसका रिश्ता भी करवाना चाहते हैं. इन सब मुद्दों को लेकर प्रफुल की जिंदगी में बहुत सारे ट्विस्ट टर्न्स आते हैं.
कमजोर कड़ियां
फिल्म का ट्रेलर काफी दिलचस्प था, लेकिन जैसे-जैसे फिल्म आगे बढ़ती है, वैसे-वैसे एक अच्छी कहानी की तलाश में हम भटकने लगते हैं. आखिर में भी निराशा ही हाथ लगती है. फिल्म का फर्स्ट हाफ काफी बांध के रखता है, लेकिन इंटरवल के बाद का पार्ट बहुत ज्यादा निराश करता है. फिल्म का क्लाइमेक्स बेहतर हो सकता था. फिल्म का कोई गीत भी ऐसा नहीं है जो रिलीज से पहले हिट रहा हो. कंगना के अलावा फिल्म की बाकी कास्टिंग और बेहतर की जा सकती थी. बहुत सारे सीन जरूरत ना होने के बावजूद डाले गए हैं. फिल्म में बहुत सारा हिस्सा अंग्रेजी में है, इसकी वजह से मल्टीप्लेक्स के दर्शकों को ये फिल्म ज्यादा पंसद आ सकती है.
ये फिल्म क्यों देखें
फिल्म का डायरेक्शन, लोकेशन, सिनेमेटोग्राफी काफी बढ़िया है. कंगना ने जिस तरह से गुजराती किरदार को पेश किया है, वह काबिल ए तारीफ़ है. बहुत ही सहज तरीके से कंगना एक गुजराती लड़की बन गई हैं. फिल्म के कुछ मूमेंट्स ऐसे हैं, जो आखिर तक याद रह जाते हैं. फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर बढ़िया है. काफी अलग तरह का फ्लेवर परोसने की कोशिश की गई है, जो एक जर्नी की तरह है. अच्छी बात ये भी है कि सिर्फ दो घंटे पांच मिनट की ये फिल्म कहीं भी बोर नहीं करती है.
पर कुल मिलाकर कंगना और प्रफुल पटेल को एक बार आप देख ही सकते हैं.