भारतीय क्रिकेटर जसप्रीत बुमराह के दादा ने इस वजह से की आत्महत्या, जानकर परिजन भी हैरान !

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भारतीय क्रिकेट टीम के स्टार गेंदबाज जसप्रीत बुमराह के पिछले दो दिन से लापता दादा संतोख सिंह बुमराह (84) का शव अहमदाबाद साबरमती नदी से बरामद हुआ है। उनके आत्महत्या करने की आशंका जतायी गयी है। उत्तराखंड के उधमसिंह नगर के किच्छा में रहने वाले बुमराह तीन चार दिन पहले यहां कथित तौर पर जसप्रीत को देखने की इच्छा के साथ आये थे।

ऑटो चलाकर गुजारा कर रहे थे संतोख 

किच्छा में आवास विकास कॉलोनी में किराये के एक छोटे से मकान में रहकर ऑटो चलाकर जीवनयापन करने वाले संतोख सिंह पिछले काफी समय से अपने पौत्र और भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी जसप्रीत बुमराह से मिलना चाह रहे थे। रुद्रपुर-किच्छा ऑटो स्टैंड पर उनके मित्रों ने बताया कि 29 नवंबर को वह अपने पौत्र जसप्रीत से मिलने अहमदाबाद रवाना हो गए थे और एक दिसंबर को वहां पहुंचे थे।

बेटी का आरोप,माँ के रवैये से परेशान थे संतोख 

उनकी पुत्री राजिंदर कौर ने फोन पर अपने पिता की मौत की पुष्टि करते हुए बताया कि पिता अपने पौत्र जसप्रीत से मिलने उनके घर गए थे,लेकिन वहां उनको किसी ने भी तवज्जो नहीं दी। बेटी राजिंदर का आरोप है कि जसप्रीत बुमराह की मां के रवैये से व्यथित होकर उन्होंने साबरमती में कूदकर आत्महत्या कर ली। रविवार को जिस वक्त संतोख का शव मिला, उस वक्त जसप्रीत बुमराह टीम इंडिया की ओर से धर्मशाला में मैच खेल रहे थे।

कभी करोडपति हुआ करते थे संतोख

करोड़पति क्रिकेटर जसप्रीत बुमराह के दादा संतोख सिंह बुमराह आजकल बुढ़ापे में किच्छा में किराये के टूटे-फूटे कमरे में रह कर मुफलिसी की ज़िन्दगी काट रहे थे। कभी गुजरात के अहमदाबाद मे बटवा इंडस्ट्रियल स्टेट में संतोख सिंह बुमराह का जलवा हुआ करता था 2001 में बेटे की बीमारी से मौत से संतोख सिंह टूट गए और फैक्ट्रियां भी आर्थिक संकट से घिर गई। बैंको का कर्ज़ा निबटाने के लिये उन्हें तीनो फेक्ट्रियों को बेचना पड़ा। उनकी शानदार ज़िन्दगी एक दम से ज़मीन पर आ गई।

पोते जसप्रीत बुमराह को जन्मदिन पर आशीर्वाद देने गए थे 

अपने पोते क्रिकेटर जसप्रीत बुमराह को उनके जन्मदिन पर आशीर्वाद देने के लिए दादा संतोख सिंह अहमदाबाद गए थे। वहां जाने के लिए लिए भी उन्होंने पैसे उधार मांगे थे। मुफलिसी में जिंदगी गुजार रहे संतोख सिंह के पास अहमदाबाद जाने का किराया भी नहीं था। परिचितों ने उन्हें अहमदाबाद जाने के लिए चार हजार रुपये जुटाकर दिये थे।

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