शियामेन (चीन) में विगत चार सितम्बर को आयोजित ब्रिक्स सम्मलेन में आतंकवाद के मुद्दे पर भारत को मिली बढ़त के बाद पड़ोसी मुल्क के सुर बदलने लगे है। यह बात तपती जमीन की तरह सच है कि आतंकवाद की फसल का बीज हमेशा कड़वा होता है। कुछ लोग समय के तकाजे को समझ लेते है और कुछ बड़ी क्षति होने के बाद निंद्रा से जागने का निरर्थक प्रयास करते रहते है। यही हाल पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान का है। देर से ही सही लेकिन पाक हुक्मरानों को अब यह बात समझ में आ रही है कि आतंकवाद को बढ़ावा देने की एवज में जम्हूरियत का कितना घिनौना क़त्ल हुआ है।
खासतौर पर अमेरिका में ट्रंप प्रशासन का उदय और दोकलम जैसे मुद्दे पर चीन की अनदेखी कर विश्व समुदाय जिस तरह से भारत के पीछे खड़ा हो गया तो पाकिस्तान की समझ के पेच खुद ब खुद कसने लगे। इसके कुछ उदहारण भी है
बुधवार को रावलपिंडी में रक्षा दिवस के मौके पर पाक सेना प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने कहा कि आतंकवाद से मुक्ति मिलनी चाहिए। बाजवा यहीं नहीं रुके, उन्होंने कहा कि मैं उन सभी लोगो (आतंकवादी गतिविधियों में शामिल) को बता देना चाहता हूँ कि जिस रस्ते पर वो चल रहे है वो जेहाद नहीं फसाद का। ऐसे लोगों की करतूतों से देश और अवाम को काफी नुकसान हो चुका है।
मजे की बात यह है कि ये वही कमर जावेद बाजवा जिन्हें कई वरिष्ठ आर्मी अफसरों की अनदेखी कर केवल इस बिनाह पर सेनाध्यक्ष बनाया गया था कि ये जम्मू कश्मीर विषय पर वृहद पकड़ रखते है। इसी रक्षा दिवस में इन्होंने यह भी कहा कि कश्मीर मसले का भारत कूटनीतिक और राजनीतिक हल निकाले। पाकिस्तान भी बातचीत के जरिये कश्मीर का समाधान। सम्भवत: किसी पाक सेनाध्यक्ष ने पहली बार आतंकवाद और कश्मीर पर समझदारी की बात की है।
पाक विदेश मंत्री आसिफ ख्वाजा तो दो कदम और आगे बाद गए। उन्होंने एक बयान में बगैर किसी लागलपेट के कह दिया कि यदि जैश और लश्कर जैसे आतंकी संगठन पाक की सरजमीं से आतंकवादी घटनाओ को अंजाम दे रहे है। अगर इन पर पाक हुकूमत ने पाबंदी नहीं लगाई तो हमें बेहद शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी। इससे पहले आसिफ ख्वाजा के पूर्वाधिकारी भी इस मसले पर आतंकवाद के खिलाफ अपनी राय दे चुके है।
सवाल यह है कि क्या पाक हुक्मरानो के सुर बदलने के साथ बदलाव शुरुआत हो सकती है ? और क्या चीन ऐसा होने देगा ?

वरिष्ठ पत्रकार अजित सिंह राठी की फेसबुक वॉल से लिया गया है