
रूद्रप्रयाग, कुलदीप राणा: उत्तराखंड के ग्रामीण अंचलों में सरकारों का रवैया हमेशा से उदासीन रहा है। हालांकि गाँवों के लिए योजनाएं तो बनती हैं पर धरातल पर आते-आते भ्रष्टाचार के अजगर उन्हें निगल जाते हैं। यही कारण है कि उत्तराखण्ड राज्य बनने के 17 साल बाद भी सड़क स्वास्थ्य बिजली पानी और रोजगार जैसी आधारभूत सुविधाओं के लिए जूझना ग्रामीणों की नियति बन गई है। लेकिन पहाड़ के लोगों में पहाड़ जैसी दृढ़ इच्छाशक्ति और पहाड़ को भेदने की प्रबल हिम्मत भी होती है बस जरूरत होती है तो इसे सही दिशा देने की। इसी के बूते रुद्रप्रयाग जनपद के चिरबटिया लुठियाग के ग्रामीणों को रिलायंश फाउण्डेशन का सहारा क्या मिला कि ग्रामीणों ने 4 दशक से जूझ रहे पेयजल जैसी गंभीर समस्या का स्थाई हल निकाला है। वहीं आजीविका उपार्जन के कार्यों से रोजगार के बेहतरीन अवसर भी तरासे हैं।
टिहरी की सीमा पर जनपद रुद्रप्रयाग का सबसे अतिम गांव चिरबटिया लुठियाग वास्तव में आज एक माॅडल के रूप में विकसित हो गया है। यहां के ग्रामीण पिछले 4 दशक से पेयजल की गंभीर समस्या से जूझ रहे थे साथ ही जंगली जानवर ग्रामीणों की फसलों को पूरी तरह चैपट कर दे रहे थे। किन्तु रिलायंश फाउण्डेशन ने ग्रामीणों को सही दिशा देने व ग्रामीणों की समस्याओं को ग्रामीणों के साथ मिलकर हल करने का बीड़ा उठाया तो मानों फाउण्डेशन की यह पहल चिरबटिया लुठियाग के लिए वरदान साबित हुई हो।
जब टिहरी जनपद से पृथक होकर रुद्रप्रयाग जनपद का गठन हुआ था तो चिरबटिया लुठियाग के ग्रामीण दोनो जनपदों की सीमाओं की चक्करघिन्नी में फँस कर रहे गये थे। भौगोलिक दृष्टि देखे तो आज भी स्थिति यह है कि गांव का आधा हिस्सा टिहरी जनपद में आता है तो दूसरा हिस्सा रुद्रप्रयाग जनपद में। भले ही प्राशसनिक कार्यों की दृष्टि से रुद्रप्रयाग जनपद में ही पूरे काम होते हैं किन्तु सरकारी योजनाओं से वंचित रहना मानों इस गांव का भाग्य में लिखा हो। जैसे तैसे ग्रामीण अपनी आजीविका तो जुटा देते किन्तु पेयजल जैसी प्राथमिक जरूरत की गम्भीर किल्लत पिछले 4 दशकों से ग्रामीणों के लिए बड़ी मुशीबत बनी हुई थी। आलम यह था कि परिवार के एक सदस्य की जिम्मेदारी दिनभर पानी भरने के लिए लगाई जाती थी और सुबह से शाम हो जाती थी। वहीं विगत 4-5 वर्षों से जंगली जानवर भी ग्रामीणों की फसलों को चैपट कर देते थे। कृषि पर निर्भर यहां के ग्रामीण जंगली जानवरों के आतंक से इस कदर परेशान हो गए थे कि गांव के 50 से अधिक परिवारों ने पलायन कर दिया था। लेकिन न सरकार सुनने वाली थी और न जनप्रतिनिधि। समस्याओं के जाल में फँसे ग्रामीणों की समस्या सुलझाने के लिए साल 2014 में रिलायंश फाउण्डेशन ने ग्रामीणों को एकत्रित कर एक समिति बनाई जिसका नाम राजराजेश्वरी कृषक समिति रखा। समय-समय पर ग्रामीणों से राय-मसवरा कर चिरबटियां से साढ़े तीन किमी. ऊपर जंगल में प्राकृति पानी के स्रोत के जिर्णोद्धार करने का बीड़ा उठाया गया। चिरबटिया लुठियाग के ग्रामीणों की दृढ़ इच्छा शक्ति और हिम्मत की बदौलत जंगल में 11 हजार लाख लीटर की क्षमता वाली झील का निर्माण किया गया। इसके बाद रिलायंश फाउण्डेशन ने पाईप लाइनों का खर्चा स्वयं का वहन कर गांव तक पानी पहुंचाया। इसके बाद तो ग्रामीणों का खुशी का ठिकाना नहीं रहा। वहीं गाँव के खेतों के चारों ओर तारबाड़ लगाकर फसलों को जंगली जानवरों के आतंक से निजात भी दिलाई। अब ग्रामीणों की आलू, चैलाई, दालें आदि फसलें अच्छी होती हंै और उनसे अच्छा मुनाफा भी कमाते हैं।
ग्रामीणों की दृढ़ इच्छा शक्ति, एकता और आपसी समन्वर से आज लुठियाग गांव में चारों तरफ खुशहाली लौट आई है। रिलायंश फाउण्डेशन मददगार के रूप गांव में आया और दुखों के जंजाल में फंसे ग्रामीणों को न केवल बाहर निकाला बल्कि पूरे जनपद में इस गांव को माॅडल के रूप में प्रस्तुत भी किया। रुद्रप्रयाग के जिलाधिकारी ने रिलायश फाउण्डेशन और ग्रामीणों के इस कार्य की तारीफ करते हुए कहा कि अन्य संस्थाओं को भी इस प्रकार के कार्य करने के लिए सलाह दी जायेगी ताकि लोग कृष बागवानी से मुँह न मोड़े और गांवों से पलायन रूके।