झूला पुल निर्माण के लिए ग्रामीण लगाए बैठे है टक टकी, कार्यदायी संस्था के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही!

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रुद्रप्रयाग: साल 2013 की आपदा में बहे विजयनगर के झूले से प्रभावित हुए इस घाटी के दर्जनों गांवों के ग्रामीणो का आक्रोश अब सातवें आसमान पर पहुँच गया है। मुख्यमंत्री से लेकर जिलाधिकारी तक इस झुला पुल निर्माण के लिए गुहार लगा चुके हैं लेकिन आपदा के चार वर्ष बीत जाने के बाद भी ग्रामीणों की सुध लेने के लिए शासन-प्रशासन तैयार नहीं है। भले ही जनता के द्वारा सड़कों पर आये दिन पुल के लिए संघर्ष करते हुए दिखाई देते हैं लेकिन कार्यदायी संस्था के कानों में ज्यू तक नहीं रेंग रही है।

मंगलवार को जैसे ही ग्रामीणों को सूबे के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के अगस्त्यमुनि दौरे का पता चला तो झूला पुल से प्रभावित ग्रामीण दौड़े-दौड़े अगस्त्यमुनि खेल मैदान में पहुंचे जहां उन्होंने प्रशासन से मुख्यमंत्री से मिलने का समय मांगा लेकिन समय के अभाव में मुख्यमंत्री ग्रामीणों से नहीं मिल पाये। ऐसे में ग्रामीणों ने मौके पर मौजूद जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल का घेराव किया गया। ग्रामीण महिलाओं ने जिलाधिकारी को खरी-खोटी सुनाते हुए चार साल से लम्बित पड़े झूल के निर्माण की जानकारी मांगनी चाही। उन्होंने कहा कि आपने जब जनपद रुद्रप्रयाग का कार्यभार सम्भाला था तब आपने वादा किया था कि अगस्त 2017 तक झूला पुल आवागमन के लिए तैयार हो जायेगा। लेकिन दिसम्बर माह आने को है किन्तु झुला पुल का निर्माण कार्य इंच भर भी आगे नहीं बढ़ पाया है।

उधर आपदा में बहे विजयनगर के इस पुल के स्थान पर लगाई गई ट्रालियों में दिनभर लोगों की कतारें लगी रहती है। जबकि पूर्व में कई हादसे भी इस ट्रालि से हो चुके है। सबसे अधिक खामियाजा स्कूली बच्चों और गर्भवती महिलाओं को भुगतना पड़ता है। ग्रामीणों की माँग है कि इस झूला पुल का निर्माण कार्य लोक निर्माण विभाग से हटाकर अन्य संस्था को दिया जाय ताकि समय पर पुल का निर्माण हो सके। ग्रामीण महिलाओं ने चेतावनी दी है कि अगर शीघ्र झुलापुल का निर्माण नहीं हुआ तो केदारनाथ हाईवे पर चक्काजाम के साथ ही क्रमिक अनशन शुरू किया जायेगा। उधर लोक निर्माण विभाग शासन से धन उपलब्ध न होने के चलते इस पुल का निर्माण नहीं कर पा रहा है।

केदारघाटी में आपदा के नाम पर सरकारों के द्वारा करोड़ों रुपये खर्च कर दिए गए हो लेकिन आपदा से प्रभावित परिवारों के आँसू आज भी आपदा के खौफनाक मंजर को बयां कर रहे हैं। आज भी रोजमर्रा की आवश्यकताओं के लिए बिना पुलों कहीं ट्रालियों में जिन्दगी और मौत के बीच झुलना पड़ रहा है तो कहीं मीलों दूर पैदल चलकर अपने गतव्य को जाना पड़ रहा है। हमारी सरकारें केदारनाथ और सम्पूर्ण केदारघाटी को अपने वोट बैंक के लिए इस्तेमाल तो कर रहीं हैं लेकिन गौरीकुण्ड से लेकर विजयनगर तक के बहे पुलों की सुध नहीं ले रही है।

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