जामरानी बांध परियोजना में 6 गाँव लेंगे जलसमाधि।

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हल्द्वानी – जामरानी बांध की स्वीकृति सन 1975 में हुई थी, 47 साल पहले जामरानी बांध की लागत 61 करोड़ थी जो अब बढ़कर 2700 करोड पहुँच गयी हैं। अब सवाल यह है की जिस बांध को करीब 47 साल पहले 61 करोड़ में बनना था आज उसी परियोजना की लागत 2700 करोड़ के आसपास पहुँच गयी है, क्या है जामरानी बांध का भविष्य।

जामरानी बांध परियोजना के निर्माण की स्वीकृति 1975 में मिल चुकी थी, करीब 9 किलोमीटर की लंबाई में 150 मीटर ऊँचा और 480 मीटर चौड़ा बांध, 47 साल पहले बांध की लागत 61 करोड़ थी वहीं वर्तमान में बांध परियोजना की लागत 2700 करोड़ के आसपास है। यानी 47 सालो में लागत 39 गुना बढ़ गयी, 47 साल का वक़्त कम नही होता, क्योंकि 61 करोड़ में बनने वाली परियोजना 2700 करोड़ में पहुंच गई लेकिन जामरानी बांध का काम 1 इंच भी आगे नही बढ़ पाया। इतने सालों से जामरानी बांध केवल कागज़ों पर बनता जा रहा है।

हर लोकसभा, विधानसभा चुनावों के दौरान एक ही मुद्दा की जामरानी बांध बनेगा, अब तक नेताओ के इस बयान में भी कोई कमी नही आई। जामरानी बांध परियोजना से जुड़े लोग रिटायर हो गए लेकिन जामरानी बांध की नाव कागज़ों पर ही तैर रही हैं। हालांकि अब इस परियोजना के लिये पर्यावरणीय स्वीकृति की मंजूरी मिल गयी है। हालांकि अब सरकार को वित्तीय संसाधन जुटाने होंगें, जामरानी बांध के निर्माण से उत्तराखण्ड को करीब 9458 हेक्टेयर और उत्तरप्रदेश को 47607 हेक्टेयर में अतिरिक्त सिचाई की सुविधा मिलेगी। इस बांध से 14 मेगावाट बिजली का उत्पादन भी प्रस्तावित है, जबकि उत्तराखण्ड को 52 क्यूबिक मीटर पानी भी पेयजल के लिए मिल सकेगा। वहीं उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड को 57 और 43 के अनुपात में पानी बटेगा। उम्मीद है की इस परियोजना से पर्यटन गतिविधियों में भी तेजी आएगी, लेकिन इन सब के बीच देखने वाली बात यह है की 47 सालो से भी ज्यादा सालो के इंतजार के बाद जामरानी बांध कागजों से उतरकर ज़मीन पर बनना कब शुरू होगा।

अधिकारियो के मुताबिक जामरानी बांध से जुडी कई स्वीकृति पार हों गयी हैं। अब केंद्र सरकार ने बांध की परियोजना के लिये फंडिंग के लिये एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) कों प्रस्ताव भेजा हैं। अब ADB अपने मानको के आधार पर आंकलन कर रही है, बाँध के दायरे में आने वाले आने वाले करीब 6 गावों के विस्थापन की प्रक्रिया भी तेज़ी से चल रही हैं।

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