दीपावली के त्योहार में लक्ष्मी की चाह रखने वालों के चलते ‘लक्ष्मीजी के वाहन’ उल्लू की जान आफत में आ जाती है। मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के उद्देश्य से कई लोग उल्लू की तांत्रिक विधि से पूजा करते हैं, जिसके कारण दीपावली पर उल्लुओं की मांग बढ़ जाती है. उत्तराखंड के कार्बेट टाइगर रिजर्व और उसके आस-पास का वन क्षेत्र दुर्लभ वन्यजीवों के लिए जाना जाता है. इसलिए यहां उल्लुओं को पकड़ने के लिए तस्करों के आने की सम्भावना भी इस दौरान बढ़ जाती है. उल्लुओं की तस्करी को रोकने के लिए टाइगर रिजर्व और उसके आस-पास के वन क्षेत्रों में विभाग ने गश्त बढ़ा दी है. वन महकमे की मानें तो उन्हें वन्यजीवों के तस्करों के यहां मौजूद होने के लिए सतर्क किया गया है।
लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू जो रात्रि में जागता और दिन में सोता है बहुत ही रहस्यमय है जिसे आज तक कोई भी व्यक्ति समझ नहीं पाया है। भारत में प्रत्येक परिवार में उल्लू शुभ व अशुभ दायरे में विद्यमान है। कहते हैं कि उल्लू को संकट से पूर्व में ही अनुभव हो जाता है। इसलिए इसे अपशकुन का प्रतीक माना जाता है लेकिन कुछ विद्वानों ने उल्लू के निम्र संकेतों को शुभ व लाभदायक माना है। कहते हैं कि रोगी व्यक्ति को प्राकृतिक रूप से उल्लू छू ले तो वह शीघ्र ही स्वस्थ हो जाता है। सुबह-सवेरे उल्लू की वाणी सुनना लाभदायक व मंगलकारी है। यदि उल्लू गर्भवती औरत को छूता है तो पुत्री होने का संकेत है। पूर्व दिशा में और वृक्ष पर बैठे उल्लू को देखने और उसकी आवाज सुनने वाले व्यक्ति को धन लाभ होता है। दक्षिण दिशा में उल्लू की आवाज सुनने पर उस व्यक्ति के शत्रुओं का नाश होता है। उल्लू का प्राकृतिक स्पर्श पाने वाले व्यक्ति का जीवन सुख ऐश्वर्य से व्यतीत होता है।