हिन्दू धर्म में विवाह को एक प्रमुख संस्कार माना जाता है और इसे पूरे विधि विधान से अनुष्ठान के साथ संपन्न किया जाता है। शादी के पूरे रस्मों में उन सात फेरों का विशेष महत्व होता है.. इन फेरों के दौरान वर वधु द्वारा सात वचन लिए जाते है, जिसके साक्षी अग्नि और ध्रुव तारा बनते हैं। आप ने शादी की रस्म देखते हुए कई बार ये वचन सुने होगें लेकिन क्या आप संस्कृत में बोले जाने वाले इन वचनों का अर्थ जानते हैं.. अगर नही, तो आज आपको इन सात वचनों का अभिप्राय बताते हैं..
वैसे तो सभी धर्मों में शादी की रस्म में कुछ वचन या कबूलनामा जरूर होता है पर अगर बात हिन्दु धर्म की जाए तो इसमें सात फेरे और सात वचन ही लिए जाते हैं तो इसका कारण है कि हिन्दू धर्म में सात को अंक को अध्यात्म की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और मान्यता है कि सात फेरों के साथ लिए गए इन वचन से वर-वधु का गृहस्थ जीवन सुखी रहेगा। आइए जानते हैं इन सात वचन और उनके अर्थ को..
पहला वचन
तीर्थव्रतोद्यापन यज्ञकर्म मया सहैव प्रियवयं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति वाक्यं प्रथमं कुमारी !!
पहला वचन कन्या वर से मांगते हुए कहती है कि कभी भी आप तीर्थ यात्रा पर जाएं तो मुझे साथ लेकर जाएं.. आप जब कोई भी व्रत और धर्म कर्म करें तो आज की तरह ही मुझे स्थान दें… अगर आप ऐसा करते हैं तो फिर मैं आपके साथ जीवन संगीनी बनना स्वीकार करती हूँ।
दूसरा वचन
पुज्यौ यथा स्वौ पितरौ ममापि तथेशभक्तो निजकर्म कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं द्वितीयम !!
दूसरे वचन में कन्या वर से संकल्प करवाती है कि अगर आप जिस तरह अपने माता-पिता का सम्मान करते हैं वैसे ही मेरे माता-पिता का सम्मान करेंगे तो मैं आपके वाम भाग में आना स्वीकार करती हूँ।
तीसरा वचन
जीवनम अवस्थात्रये मम पालनां कुर्यात,
वामांगंयामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं तृ्तीयं !!
तीसरा वचन कन्या वर से मांगते हुए कहती है कि अगर आप जीवन की तीनों अवस्थाओं.. युवावस्था, प्रौढावस्था और वृद्धावस्था में मेरा साथ देंगे तो फिर मैं आपके वाम अंग में आना स्वीकार करती हूं।
चौथा वचन
कुटुम्बसंपालनसर्वकार्य कर्तु प्रतिज्ञां यदि कातं कुर्या:,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं चतुर्थं !!
चौथे वचन में कन्या वर से संकल्प कराती है कि अब तक आप परिवार की चिंता से पूरी तरह से मुक्त थे पर अब विवाह कर गृहस्थ जीवन बसाने जा रहे हैं, ऐसे में परिवार का दायित्व आप पर आएगा… अगर आप इस दायित्व को उठाने को आप तैयार हैं तो मैं आपके वाम भाग में आना स्वीकार करती हूं।
पांचवा वचन
स्वसद्यकार्ये व्यवहारकर्मण्ये व्यये मामापि मन्त्रयेथा,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: पंचमत्र कन्या !!
पांचवे वचन में कन्या वर से ये कहती है कि शादी के बाद अपने घर के कामकाज, रस्मों और संस्कारो, धन के लेन-देन और अन्य खर्च करते वक्त अगर आप मेरा साथ लेंगे तो मैं फिर मैं आपके साथ जीवन बिताना स्वीकार करती हूं
छठा वचन
न मेपमानमं सविधे सखीनां द्यूतं न वा दुर्व्यसनं भंजश्चेत,
वामाम्गमायामि तदा त्वदीयं ब्रवीति कन्या वचनं च षष्ठम !!:”
वहीं छठे वचन में कन्या वर से कहती है कि जब मैं अपने लोगो या परिवार के सदस्यों के साथ बैठी हूँ तो आप वहां किसी कारण से मेरा अपमान नहीं करेंगे और साथ आप भी अपने आप को जुआ या दूसरे बुरे काम से दूर रखते हैं तो मैं आपके साथ जीवन बिताना स्वीकार करती हूं।
सातवां वचन
परस्त्रियं मातृसमां समीक्ष्य स्नेहं सदा चेन्मयि कान्त कुर्या,
वामांगमायामि तदा त्वदीयं ब्रूते वच: सप्तममत्र कन्या !!
आखिरी वचन में कन्या वर से वचन लेती है कि वो सभी पराई स्त्रियों को समान समझेंगे और पति-पत्नी के रिश्ते के बीच किसी को भी भागीदार नही बनाएंगे तो मैं फिर फिर वाम भाग में आना स्वीकार करती हूँ ।
कन्या ये सात वचन वर से मांगती है और उसके स्वीकार होने के बाद ही वो किसी पुरूष की जीवनसंगिनी बनती है।