गोरखपुर में गई बच्चों की जान का कारण है ‘इंसेफेलाइटिस’, जानते है इसके बारे में !!

 

सवाल ये है कि गोरखपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज मे आखिर वो ऐसी कौन सी बीमारी है जिसकी वजह से हर दिन 17-18 बच्चों की मौत हो जाती है., लोग और सरकार बस देखते रह जाते हैं . इस बीमारी का नाम है ‘जापानी बुखार’. ये बीमारी एक खास किस्म के वायरस का शिकार बनने से होती है. इस बीमारी में बाकी चीजों के अलावा सांस लेने में भी दिक्कत आती है.

वैसे तो गोरखपुर में सरकारी लालफीताशाही और ऑक्सीजन की कमी से ही एकाएक 30 मासूम बच्चों की जिंदगी ख़त्म हो गयी, लेकिन फिर सवाल ये है आखि‍र ऑक्सीजन की कमी से ज्यादातर बच्चों की ही जान क्यों गई? क्यों गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पिछले 48 घंटों में जिन 34 लोगों की मौत हुई, उनमें लगभग दो-तिहाई तादाद बच्चों की थी?
इस सवाल का जवाब है, वो बीमारी, जो ज्यादातर 16 साल से कम उम्र के बच्चों को ही अपना शिकार बनाती है. जी हां, जैपनीज इनसेफलाइटिस यानी कि जापानी बुखार या दिमागी बुखार.

 

क्या है जापानी बुखार या दिमागी बुखार
मेडिकल टर्म यानी चिकित्सकीय भाषा में अगर इस बीमारी के सिमटम्स और ज्यादा खराब होने पर इसे एक्यूट इनसेफिलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) कहा जाता है. सरकार की अनदेखी, बचाव की कमी और चिकित्सकीय लापरवाही के चलते गोरखपुर, महाराजगंज, गोंडा, बहराइच समेत पूर्वांचल का एक बड़ा इलाका वर्षों से इस घातक बीमारी से जूझ रहा है.

आंकड़ों की मानें तो पूरे देश में पांच ऐसे राज्य हैं, जहां जापानी बुखार प्रमुखता से लोगों को प्रभावित कर रहा है. इसमें उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक अकेले यूपी में इस साल एक्यूट इनसेफिलाइटिस सिंड्रोम के 924 मामले सामने आ चुके हैं. हालाँकि असम, मणिपुर, पश्चिम बंगाल और तामिलनाडु में भी जापानी बुखार का कहर है.

 

क्या कहते हैं एक्सपर्ट
एक्सपर्ट्स की मानें तो ये बीमारी एक खास वायरस का शिकार बनने से होती है. इस बीमारी में लोगों को हल्का बुखार और सिरदर्द कि शिकायत होती है, लेकिन गंभीर मामलों में तबीयत तेजी से बिगड़ती है. लोग जहरीली लीची खाने से, वायरस या बैक्टीरिया का शिकार बनने से, फफूंद या दूसरे रिएक्शन के चलते एईएस का शिकार हो सकते हैं. दिक्कत ये है कि अब तक इस बीमारी का कोई पक्का इलाज नहीं है, बल्कि इसका शिकार बनने पर सिम्टम्स दूर करने के लिए सपोर्टिव ट्रिटमेंट ही की जाती है.

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here