उत्तराखंड को देवभूमि ऐसे ही नही कहा जाता! यहां के कुछ मिथक या कहे मान्यताएं ऐसी है जो लोगों में इसे मानने से रोक नही सकती। एक ऐसा ही मिथक जुड़ा है गंगोत्री विधान सभा से। ऐसा मानना है कि जो भी पार्टी का प्रत्याशी गंगोत्री विधानसभा से जीतता है उसी की पार्टी सत्ताधारी पार्टी बनती है।
सूबे में अब फिर से विस चुनाव हो रहे हैं। भले ही बदलते वक्त के साथ सियासी समर में उतरे राजनीतिक दल व प्रत्याशी सूचना तकनीकी के साथ ही धनबल से लैस हैं। लेकिन, इस सीट के मिथक को कोई नजरंदाज करने का जोखिम कोई लेना चाहता। सियासत के इस संयोग को धर्म गुरु पतित पावनी मां गंगा की असीम कृपा करार देते हैं. इसे उत्तरकाशी जिले की इस सीट को लेकर चाहे संयोग मानें या चमत्कार, लेकिन हकीकत यही है कि जिस भी दल का प्रत्याशी उत्तरकाशी से जीता प्रदेश में उसकी ही सरकार बनती आई है। अब यह संयोग गंगोत्री विधानसभा सीट से जुड़ गया है, जो कि उत्तराखंड बनने के बाद उत्तरकाशी जिले की विधानसभा सीट में परिवर्तित हो गया।
“गंगोत्री” विधानसभा सीट का इतिहास
उत्तरकाशी की इस सीट के साथ यह मिथक जुड़ा रहा. वर्ष 1958 में यूपी का हिस्सा रहे टिहरी जिले के उत्तरकाशी सीट से कांग्रेस के रामचंद्र उनियाल विधायक बने, तो राज्य में कांग्रेस की सरकार बनी। इसके बाद तीन बार कांग्रेस के कृष्ण सिंह विधायक बने, तो प्रदेश में तीनों बार कांग्रेस की सरकार बनी। 1974 में उत्तरकाशी विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए घोषित होने पर यहां कांग्रेस नेता बलदेव सिंह आर्य विधायक बने, तब भी प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी।
वहीं आपातकाल के बाद राजनीतिक उथल-पुथल के समय जनता पार्टी अस्त्तिव में आई। उस समय जनता पार्टी के बर्फिया लाल जुवाठा चुनाव जीते और प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार बनी। ऐसे में उत्तरकाशी सीट से जुड़े इस मिथक को बनाए रखने के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों ने ही गंगोत्री विधानसभा पर हमेशा अपनी पूरी ताकत झोंकी है।
लिहाजा गंगोत्री सीट पर जो चुनावी द्वंद्व होना है उसके परिणाम को लेकर दोनों पार्टी के साथ-साथ आम जनता भी उत्साहित हैं। अब देखने है कि साल 1958 से लेकर अब तक जिस सीट ने पार्टी का भाग्य तय किया, क्या वह इस बार भी इतिहास दोहरा पाएगा।