‘क्या धर्म के नाम पर वोट मांगना भ्रष्ट क्रियाकलाप है’?

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कल कहा कि धर्म या जाति भारत की राजनीतिक धारा का मुख्य हिस्सा है. शीर्ष अदालत ने साथ ही सवाल किया कि इस आधार पर वोट मांगना चुनाव कानून के तहत ‘‘भ्रष्ट क्रियाकलाप’’ माना जाएगा या नहीं.

शीर्ष अदालत ने पूछा कि किसी उम्मीदवार या पार्टी द्वारा धर्म, जाति या जनजाति के नाम पर या यह वादा करना कि इससे मतदाताओं को समुदाय के रूप में संरक्षण में मदद मिलेगी, ‘‘भ्रष्ट क्रियाकलाप’’ होगा या नहीं.

चुनाव संबंधी ‘‘भ्रष्ट क्रियाकलाप’’ से संबंधित जनप्रतिनिधि कानून की धारा 123 (3) के दायरे की जांच कर रही अदालत ने कहा कि धर्म और जाति के आधार पर निरंतर भेदभाव का मुद्दा देश की राजनीतिक धारा का मुख्य हिस्सा है.

प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाली सात न्यायाधीशों की पीठ ने कहा, ‘‘इसमें क्या गलत है अगर कोई उम्मीदवार या पार्टी यह कहती है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति सुरक्षित नहीं हैं और वह उनसे सामूहिक रूप से उसे वोट देने के लिए कहता है क्योंकि वह उनकी रक्षा करेगा.’’

पीठ ने कहा, ‘‘अगर कोई उम्मीदवार किसी समुदाय से उनके धर्म के आधार पर और उनकी बेहतरी के उद्देश्य से वोटों की अपील करता है तो क्या यह भ्रष्ट क्रियाकलाप होगा?’’ पीठ में न्यायमूर्ति एम बी लोकुर, न्यायमूर्ति एसए बोब्डे, न्यायमूर्ति ए के गोयल, न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव भी शामिल थे.

सुनवाई के दौरान, पीठ ने आज फिर से अपनी कल की टिप्पणी दोहराई कि वह प्रसिद्ध ‘हिन्दुत्व’ फैसले पर फिर से गौर नहीं करेगी जिसमें कहा गया था कि हिन्दुत्व ‘जीवन जीने की शैली’ है क्योंकि इस मुद्दे का पांच न्यायाधीशांे की पीठ द्वारा उसे भेजे गये संदर्भ में जिक्र नहीं है.

इस मामले के एक प्रतिवादी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने मौलिक अधिकारों सहित विभिन्न संवैधानिक प्रावधानांे का जिक्र किया और कहा कि कभी न कभी शीर्ष अदालत को इस पूरे मुद्दे पर गौर करना पड़ेगा ताकि देश में जाति एवं धर्म आधारित राजनीति को बंद किया जा सके.

सिब्बल ने इस कानून की धारा 123 (3) के दायरे को बढाने की मांग करते हुए कहा, ‘‘चुनाव में किसे निशाना बनाया जा रहा है? ये मतदाता हैं.’’ उन्होंने दलील दी कि इसलिए प्रावधान में ‘‘उनका धर्म’’ शब्द को केवल उम्मीदवार तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए बल्कि इसमें मतदाताओं की आस्था को भी शामिल किया जाना चाहिए.

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