देहरादून; श्राद्ध पक्ष खत्म होने को है, जैसा कि सब जानते है कि अंतिम दिन अमावस्या तिथि है। इस तिथि को सर्व पितृ श्राद्ध का दिन भी कहा जाता है। मतलब ऐसे पितृ जिनके मरने की तिथि अज्ञात है या वह सालों से लापता हैं और उनके जिंदा होने की कोई उम्मीद भी नहीं है। ऐसे पितरों को श्राद्ध पक्ष के आखिरी दिन तर्पण दिया जाता है। भाग दौड़ भरी जिंदगी में जो भी व्यक्ति श्राद्ध नहीं कर पाए हों वह भी इस दिन अपने पूर्वजों को याद कर सकते हैं।
बता दें कि आज चतुर्दशी तिथि और 14 वां दिन है इसके बाद अंतिम दिन अमावस्या तिथि है। जिसे सर्व पितृ श्राद्ध कहते हैं। श्राद्ध, अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता दिखाने के लिए किया जाने वाला धार्मिक आयोजन है। पितरों की मृत्यु के दिन ही श्राद्ध की तिथि भी तय हो जाती है।
जानकारों की मानें तो अमावस्या श्राद्ध में भी अन्य दिनों की तरह से पितरों का पसंदीदा भोजन कर भोजन को पांच अलग-अलग पत्तल में रखकर सुपात्रों को परोसना चाहिए। शाम के वक्त पितृ विसर्जन होता है। जिसका अर्थ है कि पितृ धरती पर आते हैं और विचरण करते हैं। अमावस्या पर उनसे उनके स्थान लौटने की विनती की जाती है। नवरात्र और गणेश पूजन से अधिक अवधि का पर्व पितृ पक्ष 16 दिन का होता है।
पौराणिक मान्यताओं में है कि इस दौरान हमारे पूर्वज मोक्ष प्राप्त करने के लिए अपने परिजनों के निकट आते हैं। इस पर्व में अपने पितरों के प्रति श्रद्धा और कृतज्ञता व उनकी आत्मा के लिए शान्ति देने के लिए श्राद्ध किया जाता है।
अब हो सकेंगे शुभ काम श्राद्ध पक्ष खत्म होते ही गृह प्रवेश, विवाह व अन्य शुभ कार्यों पर लगी रोक हट जाएगी। चूंकि नवरात्र की घटस्थापना शुभ मुहुर्त में की जाती है।