ज्योतिष शास्त्र में कालसर्प दोष को बहुत ही अशुभ माना गया है। कालसर्प दोष से पीड़ित व्यक्ति को कई तरह की परेशानियां घेर लेती हैं। कालसर्प दोष से व्यक्ति के दाम्पत्य जीवन में हमेशा तनाव रहने लगता है। संतान सुख का अभाव और मानसिक परेशानियां रहती है। कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए नागपंचंमी के पर्व को बहुत ही शुभ दिन माना गया है। मान्यता है कि नागपंचमी के दिन मंदिरों में नाग देवता की पूजा करने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। 5 अगस्त को नागपंचमी का पर्व है। इस दिन नागों की विशेष रूप से पूजा की जाती है। नागपंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने से कुंडली में मौजूद कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है। कालसर्प योग के बुरे प्रभावों को दूर करने के लिए पूजा-पाठ, मंत्र और जप आदि कार्यो के अलावा कई ज्योतिषीय उपाय भी किए जाते हैं।
कुंडली में कालसर्प दोष
यदि सभी ग्रह राहू या केतु के एक ओर स्थित हों तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। राहु-केतु की भावगत स्थिति के आधार पर अनन्तादि 12 प्रकार के कालसर्प योग निर्मित होते हैं। कालसर्प योग के कारण सूर्यादि सप्तग्रहों की शुभफल देने की क्षमता समाप्त हो जाती है। इससे जातक को 42 साल की आयु तक परेशानियां झेलनी पड़ती है। आइए जानते हैं किन परिस्थितियों में कालसर्प योग का असर होता है और किसमें नहीं।
जब राहू और केतु के बीच अन्य ग्रहों की उपस्थिति हो तब ही कालसर्प योग का असर होता है।
लग्न या चन्द्रमा राहु अथवा केतु के नक्षत्र में यानि आर्द्रा, स्वाती, शतभिषा, अश्विनी, मघा, मूल में हो तो तब यह अधिक प्रभावी होता है।
राहु की शनि, मंगल अथवा चन्द्रमा के साथ युति हो तो यह योग अधिक प्रभावी होता है।
अनन्त, तक्षक एवं कर्कोटक संज्ञक कालसर्प योग में क्रमश लग्नेश, पंचमेश, सप्तमेश एवं लग्नेश की युति राहु के साथ हो तो यह योग अधिक प्रभावी होता है।
कालसर्प योग के साथ-साथ शकट,केमदूम एवं ग्रहों की नीच अस्तंगत, वक्री स्थिति हो तो कालसर्प योग अधिक प्रभावी होता है।
जन्म लेने और फिर उसके बाद करियर के निर्माण के समय यदि राहु की अथवा इससे युति ग्रह की अथवा राहु के नक्षत्र में स्थित ग्रह की दशा हो तो कालसर्प योग का असर अधिक होता है।





