सुनने में अजीब लगता है लेकिन जिन शिक्षको के पास आप अपने बच्चो को अच्छी शिक्षा के लिए भेज रहे है वो तो खुद ही बाबू का काम करने को मजबूर है, जिसके चलते स्कूलों में शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है।
एक और जहाँ विभाग की ओर से शिक्षकों पर स्कूलों में छात्र संख्या बढ़ाने का दबाव है। वैसे शिक्षको का काम शिक्षा देने का है लेकिन विभागीय दबाव के चलके स्कूल के बाद शिक्षको को बस्ती बस्ती जाकर नौनिहालों व अभिभावकों को सरकारी स्कूलों में प्रवेश करने के लिए जागरूक करना पड़ रहा है।
विभाग द्वारा इन दिनों बीआरपी, सीआरसी से प्रत्येक स्कूलों का विस्तृत ब्योरा मांगा गया है। जिन्हें भरकर उच्चाधिकारियों को सौंपना है, लेकिन बीआरपी, सीआरसी ने अपना काम शिक्षकों पर थोप दिया है। शिक्षकों का कहना है कि शिक्षा विभाग की ओर से अधिकांश सूचनाएं एक ही वर्ष में कई बार मांगी जाती हैं। अधिकांश सूचनाएं सीआरसी, बीआरपी को इसी वर्ष में कई बार दी चुकी हैं। विद्यालयों के आय-व्यय का ब्योरा हर वर्ष दिया जाता है, लेकिन रेकार्ड सुरक्षित नहीं रखने के चलते उन्हें बार-बार परेशान किया जाता है।
शिक्षकों का आरोप है कि शिक्षणोत्तर कार्य के चलते विद्यालयों में शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है, जबकि एकल अध्यापकीय विद्यालयों में पिछले एक सप्ताह से शिक्षण कार्य ठप पड़ा है।
अब देखना यह है कि शिक्षको के इस शोषण पर प्रशासन कब कार्यवाही करेगा । शिक्षा विभाग को सोचना चाहिए की शिक्षको का कार्य पढ़ना है न की दफ्तर के कार्य देखना, अगर सभी सरकारी स्कूलों के शिक्षक इसी तरह से व्यस्त हो गए तो शिक्षा व्यवस्था और गुणवत्ता का तो भगवान् की मालिक होगा ।