उत्तराखंड के गर्म जल स्रोतों से बनेगी बिजली,वाडिया इंस्टीट्यूट को मिली सफलता…!

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देहरादून-उत्तराखंड के जलविद्युत उत्पादन के क्षेत्र में देशभर में खास जगह रखता है। वहीं प्रदेश के  पहाड़ों में कई  जगह गरम पानी  के स्रोत भी हैं, हिमालयन जियोलॉजी के लिए मशहूर वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी ने हिमालयी क्षेत्र के गरम पानी के स्रोतों (हॉट स्प्रिंग) को टैप कर बिजली पाने की दिशा सफलता प्राप्त की है। वाडिया ने जोशीमठ के पास तपोवन में गर्म पानी के स्रोत से पांच किलोवाट बिजली उत्पादन के लिए एक निजी कंपनी से करार किया है। यह देश में पहला वायनरी पावर प्लांट होगा, जिसमें हॉट स्प्रिंग से बिजली का उत्पादन हो सकेगा।

 

महादीपों को आपस में जोड़ने वाली संरचना रिंग ऑफ फायर कहलाती है। भारत में यह सरंचना हिमालय से होकर गुजरती है। इससे ही पृथ्वी की भीतरी सतह की ऊष्मा लावा गर्म पानी के रुप में बाहर निकलती रहती है। हिमालय में इन्ही दरारों के आसपास जियो थर्मल स्प्रिंग की एक्टीविटी होती है। स्रोत से सिलिका कैमिकल पानी के साथ बाहर आता है। इससे ही जमीन के नीचे की गर्मी का अध्ययन किया जाता है।

वाडिया भू विज्ञान संस्थान के निदेशक  डा.कालाचांद सांई का कहना है कि देश में 70 प्रतिशत बिजली कोयले से बनती है। बीस प्रतिशत बिजली हाइड्रोपावर से बनती है। कोल के इस्तेमाल से बहुत कार्बन उत्सर्जन होता है। जबकि हाइड्रो परियोजना से भी पर्यावरण सम्बंधी नुकसान झेलने पड़ते हैं। गर्म पानी के स्रोत से बिजली बनने से पर्यावरण व कार्बन उत्सर्जन जैसी कोई बाधा नहीं है।

गरम जल स्रोतों से बनने वाली बिजली हाइड्रो पावर के मुकाबले सस्ती होगी। हाइड्रो की तरह गाद आने या पानी की कमी की दिक्कत नहीं होगी। इसके साथ ही पर्यावरण फ्रेंडली भी होगी।

न्यूजीलैंड, जापान, आइसलैंड, फिनलैंड, इटली आदि देशों में जियो थर्मल स्प्रिंग के इस्तेमाल से बिजली बनाई जा रही है। भारत में पहली बार यह प्रयास हो रहे हैं। जियो थर्मल तकनीक का प्लांट बनाने में एक आंकलन के अनुसार 1.6 ये 2.0 मिलियन डॉलर प्रति मेगावाट का खर्चा आता है। लेकिन बिजली बनने का खर्चा हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट से चार गुना कम महंगा है। हिमालय के गर्म पानी के स्रोतों के अलावा गोदावरी बेसिन, गुजरात में भी गर्म पानी के स्रोत हैं। कुमाऊं के गोरी गंगा में भी 10 किलोमीटर लम्बा जियोथर्मल फील्ड मौजूद है।

 

 

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