सिस्टम की बेरुखी से एक आम इंसान ‘दशरथ मांझी’ बनने को मजबूर होता है. जी हाँ हम बात कर रहे है, कुमांऊ के चम्पावत जिले के एक रिटायर फौजी ब्रजेश बिष्ट की, जिसने अपने बुलंद इरादे और तीन साल की कड़ी मेहनत से खुद पहाड़ी को काटकर अपने गांव तक डेढ़ किलोमीटर लंबी सड़क बना डाली. शासन-प्रशासन ने गांव के लिए सड़क बनाने में कोई रूचि नहीं दिखाई तो यह फौजी अपने गांव के लिए दशरथ मांझी बन गया.
परिजनों की नाराज़गी झेली, लोगों ने उड़ाया था उपहास
आज़ादी के सात दशक बाद भी एनएच से लगे अपने अपने गांव खूनामलक तक सड़क न पहुंचने पर बृजेश बिष्ट ने पहाड़ियों को काटकर सड़क बनाने की ठान ली. 2014 से हर साल वह छुट्टियों में आकर पहाड़ काटकर सड़क बनाने के पहाड़ जैसे काम में जुट गए और 2017 में रिटायर होने के बाद इसी काम में लग गए. इस दौरान न सिर्फ उन्हें परिवार वालों की नाराज़गी झेलनी पड़ी बल्कि लोगों का उपहास भी.
उसने श्रमदान से गांव में सड़क बनाने का प्रस्ताव रखा लेकिन गांव वालों ने उत्साह नहीं दिखाया. इससे फौजी का हौसला टूटा नहीं बल्कि और मज़बूत हो गया.फौजी ने पुष्पनगर तोक से खूनामलक तक चलने के लिए पहाड़ी काटकर डेढ़ किलोमीटर लम्बी सड़क बना डाली. सड़क बनने के बाद अब ग्रामीण खुश हैं. जो पहले उसे सड़क काटता देखकर पागल समझते थे, वही अब उसके हौसले को दाद दे रहे हैं. सड़क बनने से बीमार ग्रामीण मुख्य सड़क तक वाहन से पहुंच रहे हैं, तथा किसान अपने उत्पाद भी सड़क तक पहुंचा पा रहे हैं.
ब्रजेश अगर चाहता तो रिटायर होने के बाद नगर में अपना घर बना सकता था परंतु उसका अपनी जन्मभूमि और गांव की माटी के प्रेम ने उसे सड़क काटने का हौसला प्रदान किया. ब्रजेश ने बताया जब वह छोटा था गांव के बीमार लोगों को कन्धों पर जाता देखता था तो उसे बड़ा दुख होता था. जब फौज में भर्ती हुआ तो वहां उसने गाड़ी चलाना सीखा तथा गांव के लिए स्वंय ही सड़क काटने की ठानी. ब्रजेश ने सड़क काटने के दौरान एक भी पेड़ को नुकसान नहीं पहुंचाया.