आतंकी हीरा सिंह के एनकाउंटर की पूरी कहानी “तराई में आतंक की दस्तक”, वरिष्ट IPS अधिकारी अशोक कुमार की जुबानी…

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दोस्तों आज मैं आतंकवादी हीरा सिंह के एनकाउंटर की कहानी share कर रहा हूँ, जिसे 24 साल पूरे हो गए । जब पंजाब और तराई के युवक पाकिस्तान की ISI के जाल में आ गए थे। इस एनकाउंटर के बाद तराई से आतंकवाद का खात्मा हुआ। इस पूरे घटनाक्रम को मैंने अपनी किताब ख़ाकी में इंसान में 2 कहानियों में चित्रित किया है। पढ़िए पहली कहानी, आतंकवाद का वह दौर बहुत भयावह था। इसने सबको सिर्फ और सिर्फ त्रासदी ही दी। सबसे ज्यादा त्रासदी तो उन भटके हुए लोगों को जो ISI के जाल में आए

तराई में आतंक की दस्तक

कुमाऊँ और गढ़वाल की पहाड़ियों की तलहटी में बसा हुआ क्षेत्र तराई के नाम से जाना जाता है। इसके अन्तर्गत उत्तराखण्ड के उधमसिंहनगर और नैनीताल के अलावा उत्तर प्रदेश के बिजनौर, रामपुर, पीलीभीत, शाहजहाँपुर एवं खीरी लखीमपुर जिलों के कुछ हिस्से आते हैं। उधमसिंहनगर का तो सम्पूर्ण जनपद ही तराई क्षेत्र में आता है। मूलरूप से इस क्षेत्र में थारू और बुक्सा जनजाति के लोग निवास करते थे। यह क्षेत्र घने जंगलों, दलदली जमीन, मलेरिया पैदा करने वाले मच्छरों और शेर, चीते, बाघ, हाथी एवं अन्य खूँख्वार व दुर्लभ जंगली जानवरों के लिये जाना जाता रहा है। यहाँ रहने वाली जनजातियाँ जंगली पेड़-पौधों और जंगली जानवरों से ही अपनी जीविका चलाती थी।
यह क्षेत्र ब्रिटिश काल में जिम काॅर्बेट की भी कर्मभूमि रही है। विश्वविख्यात आरक्षित वन राजाजी नेशनल पार्क एवं काॅर्बेट नेशनल पार्क भी इसी क्षेत्र में पड़ते हैं। आजादी के बाद इस क्षेत्र में बाहर से लोगों को बसाया गया और उनको खेती के लिये जमीनें आवंटित की गईं। प्रारम्भ में विभाजन के समय पाकिस्तान छोड़कर आये सिख किसानों को इस क्षेत्र में आकर बसने के लिये आमंत्रित किया गयाए उसके बाद बांग्लादेश के शरणार्थियों और पूर्वी उत्तर प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानियों और स्नातकों को जमीनें आवंटित की गई। अब यहाँ के लोग आधुनिक तरीके से खेती कर रहे हैं। इन सिख किसानों ने घने जंगलों में मच्छरों, अजगरों एवं जंगली जानवरों का सामना कर अपना खून पसीना बहाकर कुछ ही वर्षों में दल दल को लहलहाते हुये खेतों में बदल दिया।
अस्सी के दशक में पंजाब क्षेत्र में खालिस्तान की मांग को लेकर आतंकवाद ने अपना सिर उठाया। स्वतंत्रता के पश्चात् राष्ट्र के रूप में भारत के समक्ष आने वाली चुनौतियों में आतंकवाद एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आया। 1984 तक तो तराई का क्षेत्र पंजाब के आतंकवाद से अछूता रहा किन्तु 1984 में हुए आॅपरेशन ब्ल्यू.स्टार और उसके बाद देश भर में हुई आतंकवादी घटनाओं के बाद स्थिति में एकाएक परिवर्तन आया। पंजाब में सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव के कारण आतंकवादियों ने तराई क्षेत्र में आकर शरण लेना शुरू किया। शरण लेने के लिये तराई एक आदर्श क्षेत्र के रूप में उभरा क्योंकि यहाँ पर छिपने के लिये घने जंगल एवं साथ ही समृद्ध किसान भी थे, जिन्हें आतंकवादियों के द्वारा बहला.फुसला करए धर्म के नाम पर अथवा भय दिखाकर अपने साथ जोड़ना आसान था। कुछ लोगों ने अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति हेतु व निजी रंजिशों का बदला लेने के लिये भी इन आतंकवादियों को पंजाब से तराई में बुलाया था। तराई का पहला बड़ा आतंकवादी बलविन्दर सिंह उर्फ बिन्दा इसी तरह अपने पड़ोसी जमींदार की ज्यादतियों से तंग आकर उससे बदला लेने हेतु पंजाब चला गया था और वहां से ट्रेनिंग व हथियार लेकर वापस लौटा और तराई में खालिस्तान कमाण्डो फोर्स का खूँख्वार आतंकवादी बन गया था।
वर्ष 1985 से ही इन आतंकवादियों ने जो तराई क्षेत्र में शरण लिये हुए थे, छोटी मोटी घटनाओं को अंजाम देना आरम्भ कर दिया था और अन्दर ही अन्दर अपने पैर पसारने शुरू कर दिये थे। परन्तु उत्तर प्रदेश सरकार कई वर्षों तक इस क्षेत्र में आतंकवाद की उपस्थिति को नकारती रही और इन घटनाओं को साधारण आपराधिक घटनाएं मानती रही। चार-पाँच वर्षों के बाद जब उत्तर प्रदेश सरकार और उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा क्षेत्र में आतंकवादियों की उपस्थिति को स्वीकारा गया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अकेले नैनीताल की तराई में आतंकवाद के इतिहास में लगभग सौ घटनाएं घटी थी । इन सभी घटनाओं में सबसे बड़ी घटना रुद्रपुर में अक्टूबरए 1991 में रामलीला के दौरान हुई जो एक सोची-समझी और दहशत फैलाने के उद्देश्य से की गई बम.विस्फोट की घटना थी। इस घटना में आतंकवादियों द्वारा साइकिलों में आर.डी. एक्स. को फिट करके साईकिलों को रिमोट कन्ट्रोल से ब्लास्ट किया गया था। रामलीला मैदान में विस्फोट के बाद जब लोग अस्पताल पहुँचे तो बीस मिनट बाद एक बड़ा ब्लास्ट अस्पताल में भी किया गया क्योंकि इस समय तक वहां भी बहुत भीड़ इकट्ठा हो चुकी थी। विस्फोट की इस घटना में सत्तर से अधिक लोग मारे गये और सौ से अधिक लोग घायल हुए । इस घटना की जिम्मेदारी भिण्डरवाले सैफरन टाइगर्स आॅफ खालिस्तान ;बी0एस0टी0के0 द्वारा ली गई जिसकी तराई क्षेत्र की कमांड स्वर्ण सिंह जवन्दा के हाथों में थी। इस घटना ने तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार को हिला कर रख दिया था। इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आतंकवादियों से निपटने के लिये भारी पुलिस बल तराई में तैनात किया गया तथा केन्द्र सरकार द्वारा भी केन्द्रीय अर्ध सैनिक बल की कई कम्पनियां तराई में भेजी गई। किन्तु आतंकियों के पास पुलिस से बेहतर व तकनीकी दृष्टि से अत्यन्त विकसित अचूक निशाने वाली अत्याधुनिक ए0के0.47 रायफलेंए नाईट विजन डिवाइसए उच्च फ्रीक्वेन्सी के काॅर्डलैस फोन व अन्य आधुनिक इलैक्ट्राॅनिक उपकरण उपलब्ध थे। आतंकवादियों का भय तराई के लोगों के मन में समा चुका था और तो और पुलिस भी अन्दर ही अन्दर आतंकवादियों की तैयारियों के बारे में जानती थी और उनसे भयभीत थी ।
आतंकवादियों ने धीरे-धीरे पुलिस को अपना निशाना बनाना प्रारम्भ कर दिया गया था। अतः सुरक्षा की दृष्टि से पुलिस अधिकारियों ने गाड़ियों में नीली बत्ती और नेमप्लेट लगाना बन्द कर दिया था। पुलिस कर्मियों को भी ड्यूटी के अतिरिक्त वर्दी धारण न करने के निर्देश दिये गये थे। दूर दराज की चैकियों को थाने से सम्बद्ध कर दिया गया था। अधिकारी एवं कर्मचारी गश्त आदि के दौरान अपना लोकेशन नहीं बताते थे, मार्गों को बदल.बदल कर क्षेत्र का भ्रमण किया जाता था। पुलिस कर्मियों के अन्दर इतना अधिक भय व्याप्त था कि वे खुद भी हमेशा आतंकवादी हमलों के डर से सुरक्षा के नित नये.नये तरीके खोजते थे ।
25 जूनए 1993 को जब मैं इलाहाबाद में सहायक पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात था तो मुझे अपर पुलिस अधीक्षक, नैनीताल के पद पर अपनी नियुक्ति एवं प्रोन्नति की खबर मिली। हम लोग इलाहाबाद से ट्रैन में बैठकर नैनीताल के लिये आ रहे थे । मैं और मेरी धर्मपत्नी पहाड़ों की खूबसूरती एवं सुहावने मौसम के खयालों में डूबे हुए थे। रह.रह कर मन में ये कल्पनाएं हिलोरें ले रही थीं कि हमें नैनीताल कीे हसीन वादियों, देवदार के पेड़ों के बीच घूमने, झील में नौकायन एवं पर्वतीय क्षेत्र के विहंगम नैसर्गिक दृश्यों को देखने का अवसर मिलेगा।
26 जून की सुबह हम लोग बरेली स्टेशन पर उतरे तो हमें रिसीव करने के लिये भारी पुलिस बल आया हुआ था । इतनी भारी संख्या में पुलिस बल को देखकर मैं हैरान हुआ। मैंने ड्राईवर से पूछा तो उसके द्वारा बताया गया कि तराई में स्थित रुद्रपुर में मेरा मुख्यालय होना था, जो कि पूरी तरह से आतंकवाद से ग्रस्त था, इसीलिये इतना बड़ा एस्कोर्ट साथ भेजा गया था । पूरे रास्ते में ड्राइवर व एस्कोर्ट के साथियों ने मुझे तराई में फैले आतंकवादी के बारे में बताया ।
24 जूनए 1993 को बाजपुर क्षेत्र में संतोषपुर गांव के पास गन्ने के खेत में डर का पर्याय बन चुके भिण्डरवाले सैफरन टाइगर्स आॅफ खालिस्तान के एरिया कमाण्डर हीरा सिंह एवं उसके तीन अन्य साथियों के एक झाले में होने की सूचना प्राप्त हुई । पुलिस बल के झाले के पास पहुंचने का आभास होने पर आतंकवादियों ने पुलिस पार्टी पर अंधाधुंध फायरिंग की और वे फायरिंग करते हुए गन्ने के खेत में घुस गये। इस दौरान दोनों तरफ से हुई गोलीबारी में एक आतंकवादी मारा गया। गन्ने के खेत को पुलिस, पी.ए.सी. एवं सी.आर.पी.एफ. ने घेर लिया। इस बीच जिले के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक, रुद्रपुर एवं हल्द्वानी से अपर पुलिस अधीक्षक एवं अन्य अधिकारीगण भी मौके पर पहुंँच गये और उन्होंने घेराबंदी मजबूत करके इन्तजार करने का निर्णय लिया।
बीच.बीच में हल्की.फुल्की गोलीबारी दोनों तरफ से चलती रही। रात होने पर जब अँधेरा हो गया तो हीरा सिंह ने जान की बाजी लगाकर गोलीबारी के मध्य गन्ने के खेत से निकल भागने का फैसला किया। अचानक तीनों आतंकवादी एक तरफ से एके-47 की गोलियाँ बरसाते हुए पुलिस कार्डन को तोड़ते हुए भाग निकले। आतंकवादियों ने अंधेरे का फायदा उठाया। पुलिस को इस बात का कतई अन्दाज़ नहीं था कि आतंकवादी इस प्रकार भाग सकते हैं। आतंकवादियों के इस कदम से सभी पुलिस अधिकारी एवं कर्मचारी स्तम्भित रह गये। उन्हें कुछ समझ नहीं आया कि वह क्या करें। जब तक उन्हें कुछ सूझता और वे कोई कदम उठाते, तब तक आतंकवादी भाग चुके थे ।
आतंकवादियों द्वारा की गई फायरिंग में पी.ए.सी. एवं सी.आर.पी.एफ. का एक.एक जवान शहीद हो गया। इस पृष्ठभूमि में कुछ अधिकारियों को स्थानान्तरित कर दिया गया तथा उसी क्रम में मेरी नियुक्ति यहाँ अपर पुलिस अधीक्षक के पद पर हुई थी । इस प्रकार मुझे सीधे तराई में आतंकवादियों के विरुद्ध पुलिस की कमाण्ड सम्भालने का अवसर मिला। 24 जूनए 1993 की मुठभेड़, जिसमें दो पुलिसकर्मी शहीद हुए थे, के कारण पुलिस का मनोबल बहुत गिरा हुआ था। हीरा सिंह अपने दो साथियों के साथ भागने में सफल हो चुका था।
आम आदमियों में आतंकियों का जबरदस्त भय व्याप्त था, सूर्य अस्त होने के बाद से ही फैक्ट्रियाँ बन्द हो जाती थीं और लोगों का आवागमन भी बन्द हो जाता था। सभी सड़कें वीरान हो जाती थी। अब हीरा सिंह ही बी.एस.टी.के. का तराई का एरिया कमाण्डर था, उसका पूर्व.कमाण्डर जवन्दा तराई छोड़कर पंजाब भाग गया था। हीरा सिंह व उसके साथियों को पकड़ना हमारा मुख्य लक्ष्य था। उसके विरुद्ध टाडा ;टेरेरिस्ट एण्ड डिस्ट्रक्टिव एक्टीविटीज प्रीवेन्शन एक्ट के तहत पचास से भी अधिक मुकदमे दर्ज थे, जो 200 लोगों की हत्याओं के लिये जिम्मेदार था। इनमें पच्चीस तो पुलिस कर्मी ही थे।
रुद्रपुर पहुँच कर मैंने आतंकियों के बारे में और अधिक जानकारी जुटाई और आगे की कार्यवाही के लिए योजना बनाई। अगले दिन सुबह.सुबह जब मैं हीरा सिंह की तलाश के लिये निकलने वाला था कि एक दुबली-पतली, डरी.सहमी, सफेद साड़ी में लिपटी महिला एक बुजुर्ग व्यक्ति के साथ मुझसे मिलने आई। उसकी आँखें आँसुओं से भरी थीं तथा दो-तीन माह की एक बच्ची उसकी गोद में थी । पूछने पर पता चला कि वह श्री राम आसरे यादव पूर्व क्षेत्राधिकारी की पत्नी थी और उसके साथ के व्यक्ति उसके ससुर थे। श्री यादव के साथ घटित घटना के बारे में मैंने अखबारों में पढ़ा था। वह कुछ महीने पूर्व ही बाजपुर क्षेत्र में आतंकवादियों द्वारा लैण्डमाइन में, जिसमें पुलिस की जिप्सी ब्लास्ट कर दी गयी थी, थानाध्यक्ष गदरपुर जगमोहन उपाध्याय एवं छह अन्य पुलिस कर्मियों के साथ शहीद हो गये थे।
मैंने उन्हे बैठाया और आने का कारण पूछा। श्रीमती यादव द्वारा बतायी गई रोंगटे खड़ी करने वाली आपबीती सुनकर मैं घटना की मार्मिकता को विस्तार से समझ पाया। उस घटना से जुडे़ लोगों को अपने साथ देखकर उनके साथ घटित घटना की मार्मिकता, करुणा और उससे जुड़े लोगों की पीड़ा का अनुभव सहज ही किया जा सकता था। श्रीमती यादव के सामने पहाड़.सी जिंदगी थी व छोटी बच्ची के भविष्य की चिन्ताएं तथा वृद्ध सास- ससुर की देखभाल की जिम्मेदारियां थी। उस स्त्री के दर्द को मैं सिर्फ अखबारों में छपे विवरण को पढ़कर महसूस नहीं कर सकता था ।
घटना इस प्रकार थीरू बाजपुर क्षेत्र में एक सिख लड़के की मौत के लिये आतंकवादियों ने पुलिस को जिम्मेदार ठहराया था और सिख समुदाय को खुश करने के लिये पुलिस से उसका बदला लेने की ठानी थी। बदला लेने के क्रम में आतंकवादियों ने एक षड़यन्त्र रचा जिसमें उन्होंने बाजपुर क्षेत्र के एक होमगार्डे, जो साइकिल से ड्यूटी के लिए थाने जा रहा था, के पैर में गोली मार दी। यह होमगार्ड जैसे ही घटना की सूचना देने के लिये थाने के लिये निकला आतंकवादियों ने अपनी योजना के अनुसार घटनास्थल तक पहुँचने वाले दोनों मार्गों पर बारुदी सुरंग बिछा दी। जब इस होमगार्ड ने थाने जाकर अपनी कहानी बतायी तो आतंकवादियों की क्षेत्र में उपस्थिति की सूचना पाकर उन्हें पकड़ने के उद्देश्य से पुलिस उपाधीक्षक व थानाध्यक्ष अपने साथ पाँच-छः आरक्षियों को लेकर अपनी जान की परवाह किये बगैर आतंकवादियों से लोहा लेने के लिये तत्काल मौके के लिये दौड़ पड़े । इन बहादुर पुलिस अधिकारियों को क्या पता था कि आतंकवादियों ने एक षड़यंत्र के तहत बारुदी सुरंग का जाल बिछाया हुआ है, जिसमें दूर बैठा आतंकवादी रिमोट कन्ट्रोल से सात लोगों की जिन्दगी के परखच्चे उड़ाने वाला है । इसके साथ ही आतंकवादी इन पुलिस कर्मियों से जुड़े परिवारों की जिन्दगी को भी बरबाद कर देंगे ।
विस्फोट इतना अधिक शक्तिशाली था कि जिप्सी के परखच्चे उड़ गये और उसमें सवार व्यक्तियों के शरीर के टुकड़े सौ मीटर के दायरे में जगह- जगह व पेड़ों पर बिखरे पड़े थे, जिनकी पहचान तक कर पाना सम्भव नहीं था। मौके पर पहुंचे अधिकारी भी यह मंजर देखकर अन्दर तक दहल उठे थे ।
श्रीमती यादव अपने साथ घटित घटना से इतनी भयभीत थी कि उन्होंने मेरी पत्नी को यह सलाह दी कि वह मुझे तराई छोड़कर किसी अन्य जगह अपनी नियुक्ति कराने के लिये बाध्य करें। उसकी बातें सुनकर और उसकी हालत देखकर एक बार तो मैं और मेरी पत्नी सचमुच डर गये थे, किन्तु भाग्य ने जिस मोड़ पर मुझे तराई की इस लड़ाई में ला खड़ा किया थाए वहांँ से वापस जाना मेरे मन को स्वीकार नहीं था। पुलिस जिप्सी के विस्फोट तथा चैबीस जून की मुठभेड़ के बाद तो पुलिस का मनोबल एकदम ही टूट चुका था। कोई भी पुलिस अधिकारी व कर्मचारी अपनी तरफ से आतंकवादियों के विरुद्ध कार्यवाही करने की पहल करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था।
आतंकवाद की इस पृष्ठभूमि में मैंने संकल्प लिया कि मुझे आतंकवादियों के विरुद्ध छिड़ी जंग में पुलिस के टूटे हुए मनोबल को बढ़ाने के लिये आगे आना ही होगा । अतः मैं जिप्सी में बैठा और अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार बाजपुर क्षेत्र में चैबीस जून को घटित मुठभेड़ से भागे आतंकवादी हीरा सिंह व उसके साथियों की तलाश में पुलिस टीम के साथ घने जंगलों में काॅम्बिंग करने निकल पड़ा। इस मुठभेड़ में हीरा सिंह के एक साथी को गोली लगी थी। मुठभेड़ स्थल से खून के निशानों का पीछा करते हुए हम जंगल में उस स्थान तक पहुंच गए जहाँ उन्होंने रात काटी थी। हमें झाड़ियों में छिपा हुआ खून से लथपथ उनका बिस्तर भी मिल गया था। अगले पंद्रह दिनों तक हम घने जंगलों में काॅम्बिंग करते रहे। इस दौरान हम लोग तंबुओं में रहे । घने जंगलों में काॅम्बिंग के दौरान खाना, पीना रहना वहीं किया गया। ज्यों ही हमें लगता था कि हम हीरा के नजदीक पहुंच गये हैं, वह हमें गच्चा देने में सफल हो जाता था। इसलिए मुठभेड़ के बाद के जो आॅपरेशन थे, उन्हें पंद्रह दिन के बाद बन्द कर देना पड़ा।
सूचना तंत्र के माध्यम से हमें हीरा सिंह और उसके साथियों की कभी गन्ने के खेतों में, कभी किसी व्यक्ति विशेष के झाले में और कभी जंगल में होने की सूचना मिलती रही। हीरा सिंह के द्वारा जंगलों में बनी गुजरों की झोपड़ियों को व खेतों में बने झालों का इस्तेमाल रहने व खाना के लिए किया जाता था। हम सूचना मिलते ही तत्काल वहाँ पहुँचते, जहां हमें आतंकवादियों के होने अथवा ठहरने के, रुक कर खाना खाने के प्रमाण मिलते थे। लेकिन हम लोग हमेशा एक या दो दिन पीछे रह जाते थे। जिस स्थान पर हम पहुुँचते थे, हीरा सिंह व उसके साथी उस स्थान को एक या दो दिन पहले ही छोड़ चुके होते थे। इससे स्पष्ट था कि आतंकवादियों का सूचना तंत्र पुलिस से ज्यादा बेहतर था । छह महीनों तक हम लोगों ने दिन.रात घने जंगलों में कौम्बिंग करते हुए झालों की तलाशी कर पूरी तराई का चप्पा-चप्पा छान मारा किन्तु सफलता नहीं मिली। इसके बावजूद हमने हार नहीं मानी। हीरा सिंह और उसके साथी उसी क्षेत्र में घूम रहे थे। यद्यपि हमारी सक्रियता की वजह से ही आतंकवादी पुलिस से भाग रहे थे और कोई नई घटना को अंजाम नहीं दे पा रहे थे। अब भी हम लोग वे तरीके तलाश रहे थे जिनसे हमें समय रहते हीरा सिंह की उपस्थिति की सूचना मिल सके और पुलिस के मौके पर पहुँचने व आंतकियों के भागने के बीच के समय को कम किया जा सके। हमने उनके सूचना तंत्र को कमजोर करने एवं अपने सूचना.तन्त्र को और मजबूत करने की रणनीति बनायी ।
आतंकवादियों को शरण और खाना कई बार तो उनके प्रति मूक समर्थन में दिया जाता था किन्तु अधिकांशतः बन्दूक की नोक पर ही दिया जाता था । पूर्व में ऐसे लोगों को आतंकवादियों को शरण देने की धाराओं में बन्द कर दिया गया था जिसके कारण पुलिस व जनता के बीच दूरी बन चुकी थी। फिर भी मुझे यह अच्छी तरह से आभास हो चुका था कि स्थानीय लोगों के सहयोग के बिना आतंक से तराई को छुटकारा दिला पाना बहुत मुश्किल था। स्थानीय लोग भी आंतकवादियों से छुटकारा चाहते थे और उनकी नाज़ायज़ माँगों से वे भी परेशान हो चुके थे। उनके रोज़मर्रा के काम आतंकवाद के चलते बुरी तरह प्रभावित हो रहे थे। मुझे लगा, यदि पुलिस सहयोग का हाथ बढ़ाएगी तो हमें जनता से अवश्य सहयोग मिलेगा। अतः मैंने अपनी रणनीति में कई परिर्वतन किये। अब हमने ऐसे लोगों के विरुद्ध कार्यवाही को पूर्ण रूप से रोक दिया था, जिन्हें अपने परिवार की रक्षा के लिए आतंकवादियों के डर से उन्हें सहायता पहुँचाने के लिये मबजूर होना पड़ता था ।
इस बीच हमने पूरे तराई क्षेत्र में आतंकवादियों के विरुद्ध जागरूकता लाने के लिये जगह.जगह पर गोष्ठियाँ आयोजित कीं । यह एक नई पहल थी । इससे पहले पुलिस द्वारा आतंकवाद विरोधी आपरेशन्स के नाम से बहुत से निर्दोष लोगों के उत्पीड़न की कहानियां भी सुनने को मिली थी। सिख समाज का एक बड़ा तबका ऐसा था जिसे सहयोग न देने व पुलिस का मुखबिर होने के नाम पर आतंकवादी भी परेशान करते थे व पुलिस भी किसी न किसी बहाने उन्हें प्रताड़ित करती थी । प्रारम्भ में तो लोग आतंकवादियों के भय से इन गोष्ठियों में उपस्थित होना नहीं चाहते थे किन्तु धीरे-धीरे जब उनमें सुरक्षा की भावना उत्पन्न की गई एवं फर्जी कार्यवाही के भय से निजात दिलायी गई तो लोग गोष्ठियों में अपने विचार भी प्रकट करने लगे। कुछ बहादुर लोगों के द्वारा आतंकवाद की भत्र्सना की जाने लगी और इस लड़ाई में पुलिस का सहयोग देने का भरोसा भी दिया जाने लगा। हम लोग छोटी-से-छोटी सूचना प्राप्त होने पर भी तत्काल आवश्यक कदम उठाते थे। पुलिस की इस प्रो.एक्टिव एप्रोच से लोगों के मन में हमारे प्रति विश्वास भी बढ़ा। गोष्ठियों में भी इस बात की पुष्टि हुई कि आम आदमी आतंकवादियों की कार्यवाही से त्रस्त हो चुके थे। सिख समुदाय आतंकवादी गतिविधियों से सबसे अधिक पीड़ित था, वह भी इनसे छुटकारा चाहता था।
यद्यपि वैचारिक स्तर पर हम लोग आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जीतने लगे थे परन्तु हीरा सिंह और उसके साथी अभी भी हमारी पकड़ से बाहर थे। ऐसे में जब मैं हीरा सिंह को पकड़ने की सारी उम्मीदों को छोड़ चुका था, 22 जनवरी, 1994 की सुबह साढ़े आठ बजे एक फोन काॅल ने मेरे मन में स्फूर्ति भर दी और मुझे आशा की किरण नजर आई।
यह फोन अभिसूचना विभाग के एक अधिकारी का था, जिसने मुझे बताया कि उसके पास एक युवक है, जिसे इस बात का सही-सही पता है कि हीरा सिंह कहाँ छिपा है। उसकी फोन काॅल को सुनकर मैं एकदम से उछल पडा और मैंने तत्काल उस युवक को साथ लेकर आफिस पहुँचने के निर्देश दिये। वह अठारह-उन्नीस साल का लड़का सा दिखने वाला युवा था, जिसकी नई-नई दाढ़ी आनी शुरू हुई थी और वह हीरा सिंह के गैंग का नया-नया सदस्य बना था। उसका नाम बिट्टू था। उसने बताया कि रुद्रपुर से 8 – 9 किलोमीटर दूर एक गन्ने के खेत में हीरा सिंह व उसका साथी छिपे हुए हैं। उसने यह भी बताया कि बीती रात जब वे चार लोग उस खेत में आये थे तब हीरा सिंह ने उसे व दूसरे एक साथी को रुद्रपुर या कहीं और से मोटर साइकिल चुरा कर या लूट कर लाने को भेजा था। इस मोटर साइकिल से वे शहर के एक धनी चावल मिल मालिक के बेटे का अपहरण कर उससे पचास लाख रुपए की फिरौती वसूलने वाले थे क्योंकि छह माह से भागते-भागते उनके पास पैसों की कमी हो गई थी। साथ ही इन दोनों को हीरा सिंह ने यह भी निर्देश दिया था कि सुबह साढ़े नौ बजे तक उन्हें बताई हुई जगह पर हर हाल में पहुँचना है। यदि वे नियत समय तक नहीं पहुँचे तो हीरा सिंह अपनी जगह बदल देगा।
बिट्टू ने बताया कि रात में तीन बजे के करीब उसका अपने आतंकवादी साथी से अपनी बहिन को लेकर झगड़ा हो गया था, जो इतना आगे बढ़ गया कि उसने चाकू से अपने साथी को मार डाला। बिट्टू ने जिस आतंकवादी को मारा था वह हीरा सिंह का पुराना साथी था, जब कि बिटटू हीरा सिंह के गैंग का नया-नया सदस्य था। इसलिए उसे यह डर सता रहा था कि जब हीरा सिंह को इस बात का पता चलेगा कि बिट्टू ने उसके पुराने विश्वास पात्र साथी को मार दिया है तो हीरा सिंह उसे व उसके पूरे परिवार को खत्म कर देगा । उसे अपने बचने का जब कोई और रास्ता न सूझा तो उसने अभिसूचना विभाग के अधिकारी से सम्पर्क किया था।
अभी तक हीरा सिंह की सूचना हमें उसके छिपने के स्थान को छोड़ने के कम-से-कम चैबीस घण्टे बाद मिल रही थी। यह पहली बार था कि उसके स्थान छोड़ने से एक घण्टा पहले मुझे सूचना मिल गई थी। बिट्टू की बातों में सच्चाई की झलक नजर आ रही थी और मेरे पास खोने के लिये एक मिनट भी नहीं था। इसलिये मैने आनन-फानन में जितनी भी फोर्स उपलब्ध हो सकती थी, उसे लेकर तत्काल मौके पर पहुँचने का निर्णय लिया ताकि हीरा इस बार भागने न पाए। मैंने अपनी डांगरी पहनी, अपनी एके-47 उठाई और घर की गार्द के तीन सिपाहियों, गनर व मुखबिर आतंकी को लेकर मौके के लिये रवाना हो गया। एक अठारह वर्षीय नये-नये रंगरूट आतंकवादी की बातों पर विश्वास करके जोश-जोश में यह कदम उठाने का निर्णय था, और इस सूचना का सत्यापन करने का भी प्रयास मेरे द्वारा नहीं किया गया, यह राम आसरे यादव की तरह मुझे फंसाने की आतंकवादियों की एक चाल भी तो हो सकती थी । मैंने श्री यादव के साथ घटित भयानक घटना के बारे में एक पल के लिए सोचा किन्तु उसके बावजूद अगले ही पल हीरा सिंह के लिये आपरेशन के लिये चल पड़ा क्योंकि ये रिस्क मुझे लेना ही था ।
आठ-नौ मिनट के रास्ते में हमने रुद्रपुर थाना, नैनीताल के नियंत्रण कक्ष और जनपद रामपुर को वायरलैस द्वारा अपने आॅपरेशन के बारे में सूचित किया तथा अतिरिक्त बल भेजने के लिये कहा । गन्ने के खेत में पहुँचकर बिट्टू ने मुझे उस तरफ इशारा करके बताया जिस कोने में हीरा सिंह व उसके साथी बैठे थे। मैंने खेत के चारों कोनों में अपना एक-एक आदमी लगा दिया ताकि यदि आतंकवादी भागने की कोशिश करें तो ये उन्हें रोकने का प्रयास कर सकें । जब मैं यह डिप्लायमेंट कर रहा था तो मेरे एक हाथ में एके-47 थी और दूसरे हाथ से मैंने बिट्टू को पकड़ा हुआ थाए जो कल तक हीरा सिंह के गैंग का सदस्य था । एक स्टेज ऐसी थी जब केवल मैं और बिट्टू रह गए थे मेरी छोटी.सी चूक का फायदा उठाकर वह मेरी एके-47 छीनने का प्रयास भी कर सकता था किन्तु वह सही आदमी निकला।
बाद में मैंने महसूस किया कि यदि इस स्टेज पर हीरा सिंह पिछली मुठभेड़ की तरह भागने का मन बनाता तो उसके लिए बहुत आसान होता क्योंकि गन्ने के खेत से हम लोग उसे खुले में दिख रहे थे। वह आसानी से हमें निशाना बना सकता था परन्तु हो सकता हैए हीरा ने सोचा हो कि इनके पीछे और फोर्स होगीए शायद इसलिये उसने ऐसा करने का दुस्साहस नहीं किया।
धीरे.धीरे आस-पास के थानों से अतिरिक्त पुलिस बल मौके पर पहुँचना शुरू हुआए मैने पुलिस बल को एल. शेप में तैनात करना शुरू किया । एल. शेप में तैनाती से फायरिंग के लिये दो साइड खुली छोड़ दी जाती है, जिससे कि क्राॅस फायरिंग में अपने जवानों को क्षति न पहुँचे ।
पूरे पुलिस बल को पहुँचने में दो से ढाई घण्टे का समय लगा और इस बीच पीएसी, थाने का बल व नैनीताल व रामपुर के वरिष्ठ अधिकारी भी मौके पर पहुँच गए। हम लोगों ने एक ट्रैक्टर में एक क्षेत्राधिकारी के नेतृत्व में पुलिस बल को गन्ने के खेत में भेजा। टैक्टर की आवाज पर एक आतंकी खेत में बनी पानी की नाली में लेट गया और डौल का सहारा लेकर अपनी एके-47 से फायर करने लगा। मैंने पास में स्थित युकिलिप्टस के पेड़ की आड़ लेकर फायरिंग करना प्रारम्भ कर दिया और सभी पुलिस कर्मियों को अपनी आड़ लेते हुए जवाबी फायर करने के निर्देश दिए। मुठभेड़ के दौरान हम लोगों के चारों तरफ से गोलियाँ आ-जा रही थीं। हजारों राउण्ड फायर हो चुके थे किन्तु आतंकवादियों की तरफ से गोली आना बन्द नहीं हो रही थी । तब मुझे लगा कि ए0के0.47 का रेंज सौ मीटर तक होने की वजह से हो सकता है कि गोलियां आतंकवादी के पास पहुँचने तक प्रभावी नहीं हो पा रही हो, इसलिये मैंने थ्री नौट थ्री से भी फायर करवाया क्योंकि इसका कारगर रेंज तीन सौ गज तक होता है । कुछ समय बाद आतंकवादियों की तरफ से फायरिंग आनी बन्द हो गई। पुलिस बल में से दो-तीन कर्मियों नेे क्राॅलिंग करते हुए आगे बढ़कर देखा तो एक आतंकवादी एके-47 के साथ जमीन पर लुढ़का हुआ मिला। पास जाकर देखा तो वह मृत पाया गयाए जिसकी शिनाख्त कुख्यात आतंकवादी बीएसटीके का एरिया कमाण्डर हीरा सिंह के रूप में हुई।
बिट्टू ने बताया था कि गन्ने के खेत में दो आतंकवादी मौजूद थे। इसका मतलब था कि दूसरा साथी गन्ने के खेत में ही कहीं छिपा हुआ था । हम लोग एक टैक्टर पर बैठकर गन्ने के खेत में घुसे ही थे कि आतंकवादी ने एके-47 से फायर करना प्रारम्भ कर दिया। आतंकवादी द्वारा की गई फायरिंग के जवाब में हमारी पार्टी द्वारा भी फायरिंग की गई। थोड़ी देर बाद आतंकवादी की तरफ से गोली आनी बन्द हो गई। गोलीबारी बन्द होने पर हम लोग जैसे ही ट्रैक्टर से उतर कर आगे बढ़े तो देखा कि एक आतंकवादी एके-47 के साथ लगभग बीस कदम की दूरी पर जमीन में घायल अवस्था में पड़ा है। हम लोगों को अपनी तरफ आता देख इस आतंकवादी ने अपनी एके-47 का आखिरी ब्रस्ट मारा। पूरी मुठभेड़ में यह स्थिति अत्यन्त भयावह थी क्योंकि जमीन पर लुढ़के उस आतंकवादी को हम लोग मृत समझ बैठे थे। सौभाग्य से अत्यधिक नजदीक से चलाया गया यह ब्रस्ट हमारी पार्टी के बाँई ओर से निकल गया और किसी को कोई क्षति नहीं पहुँची। इस ब्रस्ट के जबाब में हमने भी फायर किया जिससे यह आतंकवादी वहीं ढेर हो गया। इस आतंकवादी की शिनाख्त हीरा सिंह के साथी निम्मा के रूप में की गई।
इस मुठभेड़ से तराई में आतंकवाद की खूनी कहानी खत्म हुई। हीरासिंह बीएसटीके का आखिरी कमांडर था। इस मुठभेड़ की खबर दूर-दूर तक फैल गई थी रुद्रपुर से लेकर हल्द्वानी तक तथा रामपुर से लेकर मुरादाबाद व बरेली तक के लोग इन आतंकवादियों को देखने घटनास्थल पर पहुँचे। दूर-दूर से हजारों की संख्या में लोग दिन दहाड़े हुई इस मुठभेड़ को देखने के लिये आए और इन खूँख्वार आतंकवादियों के मारे जाने पर लोगों के द्वारा जश्न मनाया गया।
आतंकवाद के खात्मे से तराई और आस-पास के सभी लोगों ने राहत की साँस ली थी। लोग उनके कारनामों से तंग आ चुके थे। आतंकवाद सभी लोगों की जिन्दगी पर असर डाल रहा था। मुझे इस बात की संतुष्टि थी कि जिस चुनौती को मैंने स्वीकार किया थाए उसे पूरा किया और लाखों लोगों को आतंकवाद से छुटकारा दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाया ।

साभार : वरिष्ट IPS अधिकारी अशोक कुमार की फेसबुक बॉल से लिया गया है…..

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