अरविंद्र केजीरवाल,साधारण परिवार से दिल्ली का सीएम बनने का सफर

2015 विधानसभा में आम आदमी पार्टी को भारी बहुमत हासिल कर दिल्ली में सरकार बनाने का मौका मिला. ऐसा लगा कि आम आदमी पार्टी नई तरीके की राजनीति कर रही है और भाजपा,कांग्रेस पार्टियों के विकल्प के तौर पर साबित होगी. लेकिन 2017 के पंजाब,मणिपुर,यूपी के विधानसभा चुनाव के नतीजों और एमसीडी चुनाव के नतीजों ने दिखा दिया कि जनता को अब AAP और अरविंद केजरीवाल पर भरोसा नहीं रह गया है.

आम आदमी पार्टी के जन्मदाता अरविंद का जन्म 16 अगस्त 1968 को हरियाणा के हिसार में हुआ था. उनके पिता गोविंद राम जिंदल स्ट्रिप्स में बतौर इलेक्ट्रिकल इंजीनियर काम करते थे. बेहद साधारण से मकान में रहने वाले गोविंद राम के तीन बेटे-बेटियां हैं.

परिवर्तन आंदोलन से राजनीती की शुरूआत

साल 1999-2000 के बीच उन्होंने परिवर्तन आंदोलन की शुरुआत की. ये अभियान इनकम टैक्स, बिजली और राशन से जुड़े मामलों के प्रति जनता को जागरूक करने के लिये चलाया. इस बीच उन्होंने नौकरी से वीआरएस लिया था. साल 2003 में उन्होंने फिर से आईआरएस ज्वाइन किया और 18 महीने के लिये वहां काम किया. साथ में उनका सामाजिक कार्य भी चलता रहा.इसके बाद केजरीवाल, अन्ना हजारे के संपर्क में आये और उनके साथ मिलकर जन लोकपाल बिल के लिये जंग शुरू की. बता दें कि इस दौरान डायबिटीज पीड़ित केजरीवाल ने कई दिनों तक अनशन भी किया, डॉक्टरों ने इससे जान जाने का खतरा भी बताया था.

2012 में आम आदमी पार्टी की स्थापना

केजरीवाल ने 2 अक्टूबर 2012 को गांधीजी और शास्त्रीजी के चित्रों से सजी पृष्ठभूमि वाले मंच से अरविंद केजरीवाल ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत कर दी. उन्होंने अपनी पार्टी का नाम रखा- आम आदमी पार्टी, किरण बेदी और अन्ना हजारे जैसे लोग अरविंद केजरीवाल से नाराज हो गए. दिसंबर 2013 में केजरीवाल ने दिल्ली की सीएम को विधानसभा चुनाव में 25,864 वोटों से हराया. इसी साल वो दिल्ली के सीएम चुने गए. ये सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाई.

2015 में भारी बहुमत, अब दमन की और आप 

साल 2015 के दिल्ली चुनावों में आम आदमी पार्टी को भारी बहुमत मिली. 70 सीटों में से 67 सीटों पर पार्टी ने कब्जा जमाया. फिर एक बार अरविंद केजरीवाल दिल्ली के सीएम बने. लेकिन साल 2017 के कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में केजरीवाल को मुंह की खानी पड़ी है. पंजाब में पार्टी का प्रदर्शन जहां अपेक्षा से बुरा रहा वहीं गोवा में पार्टी एक सीट भी नहीं निकाल पाई. ऐसे में दिल्ली एमसीडी के चुनाव परिणामों पर ही पार्टी की नींव टिकी हुई थी. एमसीडी में पार्टी की दुर्गति ने एक और विचार के खत्म हो जाने के संकेत दिए हैं.

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