उत्तराखंड पंचायत चुनाव: पहाड़ में पंचायत के अखाड़े में होगी सियासत की परीक्षा

देहरादून: नैनीताल हाईकोर्ट के फैसले के बाद उत्तराखंड में पंचायत चुनाव का रास्ता साफ हो गया है, लेकिन मानसून की भारी बारिश इस प्रक्रिया को चुनौती दे रही है। बारिश के कारण कई गांवों का संपर्क कट गया है, जिससे मतदान केंद्रों तक पहुंचना मुश्किल हो सकता है। राज्य निर्वाचन आयोग और सरकार के लिए यह एक बड़ी परीक्षा होगी, जबकि वोटर राजनीतिक दलों का असली वजन तय करेंगे।

हालांकि पंचायत चुनावों में पार्टियों के सिंबल का असर नहीं होता, फिर भी गांवों की राजनीति में भाजपा और कांग्रेस आमने-सामने होती हैं। राज्य गठन के बाद यह पहली बार है जब भारी बारिश के बीच पंचायत चुनाव होने जा रहे हैं, जिससे प्रशासन और मतदाताओं दोनों के लिए हालात चुनौतीपूर्ण हैं।

अतिवृष्टि, भूस्खलन और सड़क बंद होने के कारण कई इलाकों में आवागमन बाधित है। इससे चुनावी प्रक्रिया सुचारू ढंग से कराना कठिन होगा। पोलिंग बूथों तक पहुंचना और वोटर का मतदान केंद्र जाना मुश्किल हो सकता है, जिससे मतदान प्रतिशत पर असर पड़ने की संभावना है।

राजनीतिक सियासत भी गरमाई हुई है। कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया है कि सरकार और चुनाव आयोग अपने इशारे पर काम कर रहे हैं ताकि पंचायत चुनाव में भाजपा का दबदबा बना रहे। भाजपा ने इन आरोपों को नकारते हुए कहा है कि चुनाव परिणामों से कांग्रेस को डर सताने लगा है।

भाजपा हाल के चुनावों में लगातार जीत के बाद पंचायत चुनावों में भी मजबूत स्थिति में दिख रही है। संगठन मजबूत होने के साथ-साथ संसाधन और प्रभाव की वजह से भाजपा को फायदा मिला है, जबकि कांग्रेस संगठन आंतरिक विवादों और पिछली हारों से कमजोर नजर आ रही है।

कुल मिलाकर, बारिश और कठिन हालात के बीच उत्तराखंड के पंचायत चुनाव न सिर्फ प्रशासन के लिए, बल्कि राजनीतिक दलों के लिए भी बड़ा इम्तिहान साबित होंगे।

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