नैनीताल : जहाँ उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य के जंगलों में हर साल लगने वाली आग पर गहरी नाराजगी जताई है। कोर्ट ने इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेकर सुनवाई की और कहा कि प्रदेश में जंगलों में आग लगना अब एक “फेस्टिवल” यानी त्योहार जैसा बन गया है, लेकिन राज्य सरकार अब तक इसे रोकने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा पाई है।
कोर्ट ने कहा कि इस आग की वजह से न सिर्फ पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि वन्यजीवों और आम नागरिकों की दिनचर्या भी प्रभावित हो रही है। इतना ही नहीं, आग के चलते उच्च हिमालयी क्षेत्रों का तापमान भी तेजी से बढ़ रहा है।
मुख्य न्यायाधीश जी.एस. नरेन्द्र और न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने शुक्रवार को हुई सुनवाई में राज्य सरकार के रवैये पर सवाल उठाए। कोर्ट ने साफ किया कि वह हर साल सरकार को दिशा-निर्देश दे रही है, लेकिन सरकार सिर्फ आश्वासन देने तक सीमित रह गई है।
कोर्ट में पेश पीसीसीएफ और न्यायमित्र ने आग से निपटने के लिए कई सुझाव दिए। हाईकोर्ट ने कहा कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में “खाल” यानी छोटे जलाशय बनाए जाएं और उन्हें आपस में जोड़ा जाए, ताकि जरूरत के समय उनका इस्तेमाल आग बुझाने के लिए किया जा सके।
कोर्ट ने 2017 और 2016 में भी विस्तृत गाइडलाइन जारी की थी, जिसमें गांव स्तर पर कमेटियाँ बनाने, जनजागरूकता फैलाने और जल स्रोतों के संरक्षण जैसे निर्देश दिए गए थे। लेकिन आज तक इन पर अमल नहीं हुआ।
न्यायमित्र ने यह भी कहा कि सरकार जंगलों की आग बुझाने के लिए हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल कर रही है, जो बेहद महंगा और सीमित असर वाला उपाय है। इसकी जगह गाँवों में समितियाँ बनाकर स्थानीय स्तर पर तैयारी की जाए।
अब हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वो पहले से जारी आदेशों का तत्काल पालन करे और वनाग्नि को रोकने के लिए ठोस रणनीति बनाए। मामले की अगली सुनवाई जल्द होगी।