देहरादून : रुपये की गिरावट का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। शुक्रवार को भारतीय रुपये ने पिछले दो साल में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की, जब एक डॉलर के मुकाबले रुपये 85.81 पर पहुंच गया, जो अब तक का सबसे निचला स्तर है। यह गिरावट अमेरिकी डॉलर के मुकाबले पिछले दो साल में सबसे बड़ी रही। गुरुवार को बाजार बंद होने तक रुपये का मूल्य 85.27 था, लेकिन शुक्रवार को यह और नीचे गिरते हुए 85.81 पर पहुंच गया। यह गिरावट लगातार जारी है, और 19 दिसंबर को रुपये ने पहली बार 85 रुपये का आंकड़ा पार किया था।
रुपये की गिरावट का मतलब
रुपये का मूल्य गिरने को लेकर जानकारों का कहना है कि यह भारत की अर्थव्यवस्था की कमजोरी का संकेत है। विदेशी पूंजी की अधिक निकासी और आयातकों द्वारा डॉलर की जबर्दस्त मांग के कारण रुपये पर दबाव बढ़ गया है। डॉलर की बढ़ती मांग और विदेशी मुद्रा भंडार में कमी के चलते रुपये का अवमूल्यन जारी है। हालांकि, कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और घरेलू बाजारों में सुधार ने रुपये को थोड़ी स्थिरता प्रदान की है, लेकिन फिर भी रुपये की गिरावट रुकने का नाम नहीं ले रही।
86 रुपये तक गिरने का अनुमान
विशेषज्ञों के अनुसार, रुपये की गिरावट का सिलसिला और बढ़ सकता है, और डॉलर के मुकाबले रुपये 86 रुपये से भी नीचे जा सकता है। मार्च के अंत तक रुपये का मूल्य 86 रुपये प्रति डॉलर तक गिरने की आशंका जताई जा रही है। इस साल अब तक रुपये में लगभग 3 प्रतिशत की गिरावट हो चुकी है। शुक्रवार को खुले बाजार में रुपये ने 85.35 के स्तर को छुआ और फिर गिरते हुए 85.81 तक पहुंच गया।
रुपये के गिरने के कारण आम जनता और व्यापार जगत दोनों पर असर पड़ने की संभावना है, क्योंकि इससे आयातित सामान की कीमतों में वृद्धि हो सकती है, जो महंगाई को बढ़ावा दे सकता है।
रुपये की गिरावट ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए कई सवाल खड़े कर दिए हैं, और आगामी समय में इसके प्रभावों का आकलन किया जाएगा।