पौड़ी में सड़क बनी ‘नई झील’ युवाओं ने रिबन काटकर किया उद्घाटन l

पौड़ी: लगातार हो रही मूसलाधार बारिश से जहां पौड़ी शहर का जनजीवन अस्त-व्यस्त है, वहीं कंडोलिया पार्क के पास जलभराव की समस्या अब स्थानीय लोगों के लिए मज़ाक और विरोध का नया जरिया बन गई है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि अब सड़क तालाब में बदल चुकी है, और लोगों ने इस नए जलाशय को व्यंग्यात्मक रूप से “नई झील” नाम दे दिया है।

रिबन काटकर किया ‘नई झील’ का उद्घाटन

स्थानीय युवाओं ने प्रशासन की निष्क्रियता पर कटाक्ष करते हुए जलभराव के बीच बाकायदा रिबन काटकर ‘नई झील’ का उद्घाटन किया। युवाओं ने इसे प्रदर्शन का अनोखा तरीका बताते हुए कहा कि यदि प्रशासन सड़क पर जमा पानी को रोक नहीं सकता, तो यहां बोटिंग शुरू कर देनी चाहिए। इससे लोगों को रोजगार भी मिलेगा और यह झील पौड़ी का नया पर्यटन स्थल भी बन जाएगी।

प्रदर्शन कर रहे युवाओं ने तंज कसते हुए कहा  कि हर साल बारिश होती है, हर साल यहां झील बनती है, लेकिन जिम्मेदार आंख मूंदे बैठे हैं। अब तो हम उम्मीद छोड़ चुके हैं, कम से कम झील का नाम ही रख लें!

ड्रेनेज समस्या बनी वर्षों से स्थायी संकट

स्थानीय लोगों का कहना है कि कंडोलिया पार्क के आसपास ड्रेनेज सिस्टम पूरी तरह फेल हो चुका है। थोड़ी सी बारिश के बाद ही सड़कें जलमग्न हो जाती हैं। स्कूल-कॉलेज जाने वाले छात्र, बुजुर्ग और दुपहिया वाहन चालक सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। आए दिन लोग फिसलते हैं, वाहन बंद हो जाते हैं, लेकिन जिला प्रशासन और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की चुप्पी बनी हुई है।

प्रशासन और जनप्रतिनिधियों पर गंभीर आरोप

युवाओं ने आरोप लगाया कि लाखों-करोड़ों रुपये पर्यटन को बढ़ावा देने के नाम पर खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन ल्वली झील जैसे प्रोजेक्ट आज भी अधर में हैं। यदि वहां कुछ नहीं हो पा रहा, तो कम से कम इस प्राकृतिक जलाशय” को ही टूरिस्ट स्पॉट बना दिया जाए।

प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी कि अगर जल्द ही स्थायी समाधान नहीं किया गया, तो आंदोलन को और तेज़ किया जाएगा।

राहगीरों की परेशानी: बुजुर्ग और बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित

वहीं इस मार्ग से गुजरने वाले राहगीरों का कहना है कि हर बारिश के बाद यह सड़क चलने लायक नहीं रहती। खासकर स्कूल जाने वाले बच्चे और बुजुर्गों के लिए यह रास्ता बेहद खतरनाक हो गया है। आश्चर्य की बात ये है कि जिले के वरिष्ठ अधिकारी, जिलाधिकारी और सीडीओ भी इसी मार्ग से गुजरते हैं, लेकिन अब तक इस समस्या पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।

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