Rajasthan: झालावाड़ हादसे में दिल दहला देने वाला खुलासा!

Rajasthan: झालावाड़ में शुक्रवार को एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई। इस दिल दहला देने वाले हादसे के बाद स्कूल प्रबंधन और स्थानीय प्रशासन की लापरवाही पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं।”

राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में शुक्रवार को सरकारी स्कूल की जर्जर छत गिरने से सात मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई। यह कोई प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि लापरवाही, अनदेखी और अमानवीयता का भयावह परिणाम था। किसी ने भवन निर्माण में कोताही बरती, किसी ने रखरखाव की सुध नहीं ली, किसी ने शिकायतों को अनसुना किया, और किसी ने बच्चों की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया। आखिरकार, गरीब परिवारों के वे बच्चे—जिनके माता-पिता उन्हें शिक्षा के माध्यम से भविष्य संवारने के लिए स्कूल भेजते थे—हमेशा के लिए चुप हो गए।

बयान 1: “बच्चा बोला था, छत गिरने वाली है… मैडम ने कुंडी लगा दी”

हादसे के बाद एक पीड़ित महिला ने बताया कि स्कूल भवन की खराब हालत की जानकारी पहले ही प्रशासन को दे दी गई थी, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

“मीना मैडम की गलती है। एक बच्चा बोल रहा था कि कंकड़ गिर रहे हैं, छत गिरने वाली है। मगर मैडम ने कमरे की कुंडी लगा दी। बाद में गांव वालों ने कुंडी तोड़ी। मैडम बाहर ही रहीं।”
यह बयान स्पष्ट रूप से इंगित करता है कि अगर शिक्षक ने बच्चे की बात को गंभीरता से लिया होता, तो शायद इन बच्चों की जान बच सकती थी।

बयान 2: “शिकायत की थी, फिर भी बच्चों को वहीं बैठाया गया”

गांव के बनवारी नामक व्यक्ति—जिन्होंने बच्चों को मलबे से बाहर निकाला—का बयान और भी झकझोरने वाला है।

“बच्चा-बच्ची बाहर भाग रहे थे, शिक्षक ने डांटकर फिर से अंदर भेज दिया। फिर छत गिर गई। शिकायत पांच-छह दिन पहले कर दी थी कि छत से पानी टपक रहा है। मगर मास्टर लोगों ने कहा, ‘गांव वाले करेंगे।’ स्कूल सरकार का होता है, गांव वाले क्यों ठीक करेंगे?”
यह बयान शिक्षकों की लापरवाही और सिस्टम की निष्क्रियता को उजागर करता है।

बयान 3: “स्कूल की जर्जर हालत की जानकारी नहीं थी” – कलेक्टर

झालावाड़ जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौर ने सफाई देते हुए कहा:

“शिक्षा विभाग को निर्देश दिए गए थे कि जर्जर भवन वाले स्कूलों में छुट्टी की जाए। पर इस स्कूल का नाम ऐसे भवनों की सूची में नहीं था। जांच के आदेश दिए गए हैं।”
यह बयान सिस्टम की खामियों और प्रशासनिक संवाद की विफलता की ओर इशारा करता है।

सवालों के घेरे में पूरा सिस्टम

इन तीन बयानों से तस्वीर साफ हो जाती है—गांव वालों की शिकायतों को नजरअंदाज किया गया, शिक्षकों ने बच्चों की चेतावनियों को अनसुना किया, और प्रशासन तक खतरे की सूचना पहुंच ही नहीं सकी।
अब जब हादसा हो गया, तो शिक्षा मंत्री मदन दिलावर खुद को दोषी बता रहे हैं और कह रहे हैं कि 2000 स्कूलों की मरम्मत कराई जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि जिनकी जान गई, क्या उन्हें वापस लाया जा सकता है?

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