अब Digital धर्मांतरण पर भी शिकंजा, उत्तराखंड में और सख्त हुआ कानून

भराड़ीसैंण/देहरादून: एक वादा था बेहतर जिंदगी का, एक उम्मीद थी नई रोशनी की… लेकिन उसके बदले मिला धोखा, मजबूरी और पहचान की कीमत पर बदलता धर्म।”

ऐसी ही कई खामोश कहानियों को अब उत्तराखंड सरकार ने आवाज देने का फैसला किया है। मंगलवार को भराड़ीसैंण विधानसभा के पटल पर पेश किए गए ‘उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता एवं विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध (संशोधन) विधेयक’ ने यह साफ कर दिया है कि अब सिर्फ सड़क पर ही नहीं, बल्कि Digital दुनिया में भी जबरन या लालच से धर्म परिवर्तन कराने वालों पर कानून की पकड़ और कसने वाली है।

सरकार ने मौजूदा धर्मांतरण कानून को और अधिक सख्त बना दिया है। विधेयक के अनुसार—

  • अब उपहार, नकद धनराशि, नौकरी या विवाह का लालच,

  • बेटर लाइफस्टाइल का वादा,

  • या किसी धर्म का दूसरे धर्म के खिलाफ महिमामंडन करना भी अपराध की श्रेणी में आएगा।

सख्त सजा, बड़ी कार्रवाई

जहां पहले इस अपराध के लिए अधिकतम 10 साल की सजा थी, वहीं अब इसे बढ़ाकर 14 साल से लेकर आजीवन कारावास तक कर दिया गया है।
सिर्फ इतना ही नहीं— अब जुर्माना भी 50,000 रुपये से बढ़ाकर 10 लाख रुपये तक हो सकता है।

इसके अलावा, अगर किसी ने धर्म परिवर्तन से जुड़ा अपराध कर संपत्ति अर्जित की है, तो उसे भी अब कुर्क किया जा सकेगा। जिलाधिकारी को इस संबंध में विशेष अधिकार दिए गए हैं।

पीड़ितों को मिलेगा सहारा

इस संशोधन में सरकार ने पीड़ितों के पुनर्वास और सुरक्षा को भी प्राथमिकता दी है। पीड़ितों को मिलेगी—

  • कानूनी सहायता

  • रहने की व्यवस्था

  • चिकित्सा सुविधा और मानसिक सहायता

  • और उनका नाम व पहचान रखी जाएगी पूरी तरह गोपनीय

इसके लिए एक विशेष योजना बनाई जाएगी, ताकि पीड़ितों को तत्काल मदद मिल सके।

जन भावनाओं का सम्मान या नई बहस की शुरुआत?

जहां एक ओर सरकार इस कदम को धर्म की स्वतंत्रता और पीड़ितों की रक्षा के लिए अहम बता रही है, वहीं कुछ मानवाधिकार संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि ऐसे कानूनों को लागू करते वक्त व्यक्तिगत स्वतंत्रता और संवैधानिक अधिकारों का भी सम्मान किया जाना चाहिए।

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