टिहरी गढ़वाल: टिहरी जिले में स्थित मुनि की रेती में अंग्रेजी शराब की दुकान प्रशासन के लिए लगातार परेशानी का कारण बनी हुई है। कभी हंगामा, कभी धरना-प्रदर्शन और कभी जमीन को लेकर उठते सवाल इस ठेके को जी का जंजाल बना चुके हैं। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि मामला अब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) तक पहुंच गया है, जिससे अफसर भी असमंजस में नजर आ रहे हैं।
मुनि की रेती में शराब का ठेका बना प्रशासन का सिरदर्द
उत्तराखंड में शराब की दुकानें आमतौर पर सरकारी राजस्व का बड़ा स्रोत मानी जाती हैं, लेकिन मुनि की रेती में स्थित यह अंग्रेजी शराब का ठेका सरकार और प्रशासन दोनों के लिए सिरदर्द बन चुका है। बीते कई महीनों से यह ठेका लगातार विवादों में घिरा हुआ है। हत्या की घटना से लेकर वन भूमि अतिक्रमण तक, एक के बाद एक गंभीर आरोप सामने आने के बाद मामला एनजीटी तक पहुंच गया है।
अजेंद्र कंडारी की हत्या के बाद भड़का जनआक्रोश
इस ठेके से जुड़ा विवाद अक्टूबर 2025 में उस समय और गहरा गया, जब एक युवक अजेंद्र कंडारी की हत्या कर दी गई। बताया गया कि अजेंद्र अपने एक दोस्त के साथ मुनि की रेती स्थित इसी शराब की दुकान पर पहुंचा था। शराब पीने के दौरान किसी बात को लेकर दोनों में कहासुनी हुई, जो बाद में हिंसक झगड़े में बदल गई। आरोप है कि इसी दौरान अजेंद्र के दोस्त ने उसकी हत्या कर दी, जिससे पूरे क्षेत्र में आक्रोश फैल गया।
शुरुआत से ही विवादों से घिरा हुआ है ठेका
हत्या के बाद स्थानीय लोगों ने शराब के ठेके को इस घटना के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए इसे बंद करने की मांग की। कई दिनों तक प्रदर्शन चले, जिसके चलते प्रशासन को ठेका अस्थायी रूप से बंद करना पड़ा। हालांकि बाद में पुलिस बल की तैनाती बढ़ाकर दुकान दोबारा खोल दी गई। गौर करने वाली बात ये है कि ये पहला विवाद नहीं है। साल 2018 में जब ये ठेका खोला गया था, तब भी इसका जोरदार विरोध हुआ था। राम झूला से महज एक से डेढ़ किलोमीटर और गंगा नदी से करीब 900 मीटर की दूरी पर स्थित होने के कारण इसे लेकर धार्मिक और पर्यटन क्षेत्र की गरिमा पर सवाल उठते रहे हैं।
NGT के आदेश से बढ़ी प्रशासन की दुविधा
ताजा मामला नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल से जुड़ा है, जहां याचिका दायर कर आरोप लगाया गया है कि ये शराब ठेका आरक्षित वन भूमि पर अतिक्रमण कर संचालित हो रहा है। इस पर एनजीटी ने टिहरी जिलाधिकारी, प्रमुख वन संरक्षक और आबकारी आयुक्त को संयुक्त समिति बनाकर जांच के निर्देश दिए हैं। समिति को 18 मार्च 2026 से पहले अपनी रिपोर्ट दाखिल करनी है। दिक्कत यह है कि वन विभाग की फाइलों में जमीन वन क्षेत्र बताई गई है, जबकि राजस्व रिकॉर्ड में इसे राजस्व भूमि दर्शाया गया है। जिलाधिकारी नितिका खंडेलवाल ने बताया कि रिपोर्ट शासन को भेजी जा चुकी है और आगे का फैसला शासन स्तर पर लिया जाएगा। फिलहाल ये शराब ठेका प्रशासन के लिए लगातार सिरदर्द बना हुआ है।




