

देवभूमि उत्तराखंड की सांस्कृतिक परंपराओं का जीवंत स्वरूप गुरुवार को मसूरी में देखने को मिला। जब गढ़वाल महिला सभा की महिलाओं ने शहीद स्थल पर पूरे उत्साह और पारंपरिक आभा के साथ इगास पर्व मनाया। जिसे देख पर्यटक भी खुद को यहां आने से नहीं रोक पाए।
गढ़वाल महिला सभा ने शहीद स्थल पर मनाया इगास पर्व
इगास लोकपर्व जो कि दिवाली के ग्यारह दिन बाद मनाया जाता है और इसे गढ़वाल की “बूढ़ी दिवाली” के नाम से भी जाना जाता है। गुरूवार को मसूरी में गढ़वाल महिला सभा की महिलाओं ने शहीद स्थल पर पूरे उत्साह और पारंपरिक आभा के साथ इगास पर्व मनाया।
हालांकि इस वर्ष इगास पर्व की तिथि 1 नवंबर है, लेकिन मसूरी में गढ़वाल महिला सभा ने इसे पहले ही मनाया, ताकि स्थानीय लोग और पर्यटक इस पर्व की संस्कृति से रूबरू हो सकें। आयोजन स्थल पर पर्व का उल्लास देखते ही बनता था। महिलाएं पारंपरिक गढ़वाली वेशभूषा में सजीं, लोकगीतों की धुन पर झूमती नजर आईं और पूरे वातावरण में पहाड़ी संस्कृति की सुगंध फैल गई।
पारंपरिक व्यंजनों ने कार्यक्रम में लगाए चार चांद
कार्यक्रम में महिलाओं ने अपने घरों में बनाए गढ़वाली पारंपरिक व्यंजन जैसे झंगोरे की खीर, अरसा, सिंगल, झोली-भात, पकोड़े और मंडुवे की रोटी आदि लाकर स्थानीय लोगों और देश-विदेश से आए पर्यटकों को परोसे। पर्यटकों ने न सिर्फ इन व्यंजनों का स्वाद लिया बल्कि गढ़वाल की संस्कृति के प्रति उत्सुकता भी दिखाई। कई विदेशी पर्यटक पारंपरिक नृत्य और गीतों के साथ शामिल होते नजर आए।
इगास पर्व केवल उत्सव नहीं बल्कि हमारी पहचान
गढ़वाल महिला सभा की पदाधिकारियों ने कहा कि इगास पर्व केवल उत्सव नहीं, बल्कि अपनी लोक संस्कृति और पहचान को जीवित रखने का माध्यम है। उन्होंने कहा कि इस पर्व पर महिलाएं अपनी परंपरागत वेशभूषा पहनकर लोकगीतों पर नृत्य करती हैं, जिससे नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति और परंपरा से जोड़ने का अवसर मिलता है।
महिलाओं ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का इगास पर्व पर सरकारी अवकाश घोषित करने के लिए आभार जताया और कहा कि सरकार राज्य की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण के लिए निरंतर प्रयासरत है।



